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प्रकाश पण जैनेन्द्र दर्शनमा एक अंशाने ज आभारी छे, जेथी समजी शकाय तेम से के अन्य दर्शनो अपूर्ण अने आपेक्षिक ज्ञान संपादन कराववामां असfar at नथी माटे ज
म छे. कारण के
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कोइ कोइ म एकांतवाद स्थापना जतां अनेकांतवाद स्वीकार्यों होय तेम अनेक स्थले जणाय छे, जे वात प्रसंगे जणाची उचित छे.
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तात्पर्य ए के मोनसाधनने कपादिनी शुद्धि दर्शावचापूर्वक संपूर्ण रीते प्रतिपादन करनार - भवोभव चाह्नवालायक श्री जैनेन्द्र दर्शन ज छे, माटे ज मंत्री वस्तुपाले अंतिम समये एज भान्छे के
" यन्मयोपार्जितं पुण्यं जिनशासन - सेवया ।। जिनशासनसेवैव तेन मेऽस्तु भवे भवे ॥ १ ॥ " " शास्त्राभ्यासो जिनपदनतिः संगतिः सर्वदाऽयैः, सद्वृत्तानां गुणगणकथा दोपवादे च मौनम् । सर्वस्यापि प्रियहितवचो भावना चात्मतच्चे, सम्पद्यन्तां मम भवभवे यावदाप्तोऽपवर्गः ॥ १ ॥ "
शासननी सेवा तो लोकोत्तर फलदायक छे एमां नवाइ शी ? परंतु तेनो प्रेम पण चहाणना जेवुं काम करे छे, माटे ज श्रीमान वाचकवर्ये कयुं छे के" अस्मादृशां प्रमादग्रस्तानां चरणकरणहीनानां । अन्ध पोत वे प्रवचनरागः शुभोपायः ॥ १ ॥
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" विषयानुबन्धर्वधुर - मन्यन्न किमप्यहं फलं याचे । किंत्वेकमिह जन्मनि, जिनमतरागं परत्रापि ॥ २ ॥ "
आया सर्व दुःखनाशक ज्ञानानन्दना विलासी भरेला - सर्वसंपत्तिदायक जैनेन्द्रशासनमां मोनी प्राप्ति संक्षेपे ज्ञानयुक्त क्रियाराधनथी अने विस्तारे उत्तम दर्शनादि त्रणना आराधनथी कही छे. जुओ–
ज्ञानक्रियायां मोक्षः || सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि भोक्षमार्गः ।।
अहीं एक प्रश्न उपस्थित थाय छे के क्रियानी पहेलां ज्ञान फेम कीधुं ? उत्तर - क्रियानी निर्दोष आराधना तो ज्ञानने आधीन छे, माटे ज फझुं छे के