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[हिन्दी टीका]-इस यंत्र को मनुष्य की खोपड़ी के ऊपर शङ्गीविष और गधे के रक्त में मृतक मनुष्य की हड्डी की कलम बनाकर लिखे मात्र पहले कहे हुय यंत्रा कार में य: के स्थान पर हुं बीज को लिखे ।।११।।
श्मशाने १निखने रोषात् कृत्वा तद् भस्मपूरितम् । करोति तत्फुलोक्चादं वरिणां सप्तरातः ॥१२॥
[संस्कृत टोका]--'श्मशाने' प्रतवने । 'निक्षिपेत्' स्थापयेत् । कथम् ? 'रोषात्' कृत्वा तद् भस्मपूरितम् तत् कपाल सम्पुटं श्मशानभस्म पूरितं कृत्वा । 'तद' 'वैरिणा' शत्रूणाम् । :कुलोच्चाट करोति' कुलोच्चाटनं करोति । कथम् ? 'सप्तरात्रतः॥ उच्चाटन कर्मणि हरञ्जिका यन्त्रम् ।।१२।।
[हिन्दी टीका]-फिर उस यत्र को क्रोध में आकर श्मशान की राख से भरकर श्मशान में फेंक दे तो इस यत्र के प्रभाव से सात दिन में शत्रु के सम्पूर्ण परिवार का उच्चाटन कर देता है। उच्चाटन कर्म के लिये यह ह रंजिका यंत्र है, देख्ने चित्र यंत्र नं० १०
नोट :-सावधान साधक इन उच्चाटनादि क्रिया को नहीं करे, बहुत पापबंध होता है । वीतरागता से रहे, ममता से रहे।
इन यंत्रों की विधि में गधे के रक्त आदि का प्रयोग पाया है। सो ऐसे पदार्थ कार्य में नहीं लेवे, ऐसा हमारा आदेश है ॥१२॥
फडक्षरं नमः स्थाने श्मशान स्थित कर्पटे । निम्बार्कजरसेनेतद् बिलिखेत् कद्धचेतसा ॥१३॥
[संस्कृत टीका]- फडक्षरं' फडित्यक्षरम् । 'नभ.स्थाने' 'प्रालिखित फहकार स्थाने । 'मशान स्थित कर्पटे' श्मशान गृहीत बसने । 'निम्बार्कजरसेन' किम्बरबिरसेन । 'एतत्' फडक्षरान्वितं यन्त्रं 'विलिखेत्' लिखेत् । कथम् ? 'कुद्धचेतसा' कुद्धभावेन ॥१३॥
[हिन्दी टीका]-पहले कहे अनुसार यंत्र के समान है कार के स्थान पर फट् अक्षर श्मशान के कपड़े पर नीम का रस और अकौए का रस से क्रोध में पाकर भरकर यंत्र को लिखे ।।१३।।
१. निक्षिपेद्रोषात्' इति ख पाठः ।