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मन्त्रोद्धार :- ह्रीं ह ह्रस्फ्लो " श्री पद्म ! नमः । इतिषडक्षरमन्त्रः ॥३१॥
[हिन्दी टीका]-ब्रह्म ॐ कार माया ही कार, ह्रकार हल्की और श्रीं बीज पद्म, यह पद और नमः इस पद से बना हुआ इस मंत्र को मंत्रवादी षडक्षरी मंत्र कहते हैं।
मंत्रोद्धार :-"ॐ ह्रीं ह्रह क्ली श्री पद्मनमः ।" ।।३१।। वाग्भवं चित्त नाथं च हौ कारं षान्तमूर्धगम् । बिन्दुद्वययुतं प्राविबुधात्यक्षरीमिमाम् ॥३२॥
[संस्कृत टीका] 'वाग्भव' ऐकारम्, 'चित्तनाथ' ल्को कारम्, 'चः' समुच्चये, 'होकारं' हौमिति अक्षरम्, कथम्भूतम् ? 'षान्तमूर्धगम् षकारस्यान्तः सकारः तस्यमूर्धगं सकारोपरिस्थितम्, 'बिन्दुययुतं' विसर्ग संयुतम्, एवं हसौः इति बीजम्, 'त्र्यक्षरीमिमाम्' इमां यक्षरीविद्या, "विबुधाः प्राजाः, 'प्राहुः' प्रकर्षण पाहुः ॥३२॥
_[हिन्दी टीका]-वाग्भवं माने ऐ कारं चित्तनाथं माने ल्की कारम् ह्रौं कारं, उसके बाद आये हुए सकार और विसर्ग सहित ह्रसौ यह बीज इस मंत्र को विद्वानों ने तीन अक्षर का मंत्र है।
मंत्रोद्धार :- ॐ ऐं क्लीं ह्रसां नमः ।।३२।। वन्तिः पार्थजिनो यो रेफस्तलगतः स धरणेन्द्रः। तुर्यस्वरः सबिन्दुः स भवेत् पद्मावतीसंज्ञः ॥३३॥
[संस्कृत टोका]-'वर्णान्तः' हकार, सहकारः 'पार्श्वजिनः' पार्श्वजिन संज्ञो भवति । 'यो रेफः तलगतः' यस्तलगतो रेफः 'स धरणेन्द्रः' धरणेन्द्र संज्ञो भवति । 'तुर्यस्वरः' चतुर्थस्वरः-ईकारः, 'सबिन्दुः' अनुस्वारयुतः स भवेत् पद्मावती संज्ञः' स पद्मावती देवी संज्ञा भवति । एवं ह्रीं इत्येकासरी विद्या ॥३३॥
[हिन्दी टीका]-वर्षों के अंत में का हकार, वह हकार पार्श्वनाथजिन संज्ञा का वाचक है, उस हकार के नीचे, रेफ वह रेफ धरगोन्द्र संज्ञा वाला होता है, चौथा नंबर का स्वर, याने ई कार वह बिन्दु अनुस्वार युक्त बह पद्मावती संज्ञा वाला है, इस प्रकार से बनने वाले मंत्र को एकाक्षरी मंत्र कहा है।
मंत्रोद्वार :-'ॐ ह्रीं नमः ।' यह एकाक्षरी विद्या है ।।३३।।
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१ कामरजं च इति स पाठः ।