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________________ ( २३ ) तृतीयो देव्यर्चनाक्रम परिच्छेदः दोपनसुपल्लव-सम्पुट-रोध-प्रथना-विदर्भणः कुर्यात् । शान्ति-ष-वशीकृत-बन्ध-रव्याष्टि-संस्तम्भम् ॥१॥ [संस्कृत टीका]-'दीपन' दीपनेन शान्तिकं कुर्यात्, 'पल्लव' पल्लवेन विद्वेषणं कुर्यात्, 'सम्पुट' सम्पुटेन वश्यं कुर्यात्, 'रोधन' रोधनेन बन्धं कुर्यात्, 'प्रथना' प्रथनया रव्याकृष्टि कुर्यात्, षिवर्भरणः विदर्भणेन क्रोधादि स्तम्भं कुर्यात् ॥१॥ [हिन्दी टीका]-दीपन कर्म से शांति करे, पल्लव कर्म से विद्वेषण करे, सम्पुट कर्म से वशीकरण करे, रोधन कर्म से मारण करे, ग्रंथन कर्म से स्त्री पाकर्षण करे और विदर्भग्ण कर्म से क्रोधादि स्तम्भन करे ।।१।। प्रथदीपनादीनां व्याख्याप्रादौ नामनिवेशो दीपनमन्ते च पल्लवो ज्ञेयः । तन्मध्यगतं सम्पुटमथादिमध्यान्तगो रोधः ॥२॥ प्रथनं वर्णान्तरितं यक्षरमध्यस्थितो विदर्भः स्यात् । षट्कर्म करणमेतज् ज्ञात्वाऽनुष्ठानमाचरेन्मन्त्री ॥३॥ [संस्कृत टोका]-'प्रादौ नामनिवेशौ दीपनम्' मन्त्रस्यादौ यन्नामनिवेशनं तद् दीपनं स्यात् । 'अन्ते च पल्लवो ज्ञेयः' मन्त्रस्यान्ते यन्नामनिवेशनं स पल्लयो 'ज्ञेयः' ज्ञातव्यः । 'तन्मध्यगतं सम्पुटं' तन्मन्त्रमध्ये निवेशितं नाम सम्पुटमिति स्यात् । 'प्रथाविमध्यान्तगो रोधः' अथ पश्चात् मन्त्रस्यादौ मध्ये अन्ते च पन्नामनिवेशनं स रोधः स्यात् । 'प्रथनं वर्णान्तरितम्' मन्त्रस्याक्षरमेकं नामाक्षरमेकं एवं वर्णग्रथम तद्ग्रथन मिति स्यात् । 'द्वयक्षरमध्ये स्थितो विदर्भः स्यात्' मन्जस्याक्षरतय प्रति पश्चाद् यन्नामनिवेशः स विदर्भः स्यात् । 'षट्कर्मकरसमेतत्' एतच् शान्त्यादि षट्कर्म क्रिया विधानं 'ज्ञात्वा' बुद्ध्वा अनुष्ठानं मन्त्रवादी पाचरेत् ॥२॥३॥ [हिन्दी टीका]-मंत्र के आदि में नाम लिखना 'दीपन' कहलाता है, अंत में नाम लिखने से 'पल्लव' कहलाता है, मध्य में नाम लिखने से 'संपुट' कहलाता है । आदि में, मध्य में और अन्त में साध्य का नाम लिखने से 'रोधन' कहलाता है, मंत्र के एक अक्षर के बाद नाम लिखने से 'ग्रंथन' होता है, मंत्र के दो-दो अक्षरों के बाद नाम लिखने से 'विदर्भ' कहलाता है। इसी को षट्कर्म करते हैं, मंत्रवादी इन षट्कर्मों को जानकर हो अनुष्ठान (मंत्राराधना आदि) प्रारंभ करे ॥२।।३।।
SR No.090432
Book TitleBhairava Padmavati Kalpa
Original Sutra AuthorMallishenacharya
AuthorShantikumar Gangwal
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Occult
File Size5 MB
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