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________________ [हिन्दी टीका]-चरित्र ही जिनका शरीर-भूषण है । बाह याभ्यंतर परिग्रह के त्यागी हैं और जो दुर्जय कामदेव को नष्ट करने वाले हैं, भव्य रूपी कमलों लिये मूर्य के समान हैं, ऐसे श्री जिनसेन स्वामी उनके कनकसेन मुनि के शिष्य थे ॥५५॥ तबीयशिष्योऽजनि मल्लिषेरणः सरस्वतीलब्धवर प्रसादः । तेनोवितो भैरवदेवताया कल्पः समासेन चतुःशतेम ॥५६॥ [संस्कृत टीका]-'तदोयशिष्यः' जिनसेनाचार्यस्य शिष्यः। 'प्रजनि' जातः। कः ? 'मल्लिषेरण' मल्लिरणाचार्यः । कथम्भूतः ? 'सरस्वतीलब्धवर प्रसादः सरस्वती देव्याः सकाशात् प्राप्तवरप्रसावः । तेन' मल्लिषणाचार्येण । 'उदित्तः' कथितः । 'भैरव देवतायाः' भैरव पद्मावती देव्याः। 'कल्पः' मन्त्रवाद समूहः। 'समासेन' संक्षेपेण । 'चतुशतेन' चतुः शत सङ्ग्या ग्रन्थ प्रमाणेन ॥५६॥ [हिन्दी टीका]-श्री आचार्य जिनसेन के सुयोग्य शिष्य श्री मल्लिसेन मनि थे, जिन पर सरस्वती देवी की कृपा थी, उन प्राचार्य मल्लिसेन ने यह भैरव पद्मवती कल्प मंत्र-स्तोत्रादि सहित चार सौ श्लोकों में बनाया है ।।५६।। यावद्वाधिमहीधरतारागरणगगनचन्द्र दिनपतयः । तिष्ठन्ति तावदास्तां भैरव पद्मावती कल्पः ॥५७।। [संस्कृत टीका]-'यावत्' यावत्कालपर्यन्तम् । 'वाधिः' समुद्रः। 'महीधरः' कुल शैलः । 'तारागरणः' नक्षत्र समूहः । 'गगन' पाकाशः। 'चन्द्र' मृगाः । "दिनपतिः' मार्तण्डः । एते वादियो यावत्कालपर्यंत 'तिष्ठन्ति' स्थास्यन्ति । 'तावत' तावत्कालपर्यन्तम् । 'प्रास्ताम् तिष्ठतु । 'भैरव पञ्चायती कल्पः' 'भैरव पायतीनामदेव्याः मन्त्रकल्पः ।। [हिन्दी टीका]-जबतक समुद्र, पर्वत, तारागण, आकाश, चन्द्र और सूर्य रहेंगे तब तक यह भैरव पद्मावती कल्प भी बना रहे ।। ५.७।। ___ इत्युभय भाषाकविशेखर श्री मल्लिषेण सूरिविरचितो भैरव पद्मावती कल्पः समाप्तः ॥ श्री उभय भाषा कवि श्री मल्लिरणाचार्य विरचित भैरव पद्मावती कल्प के गरुडाधिकार की हिन्दी बिजया दीका समाप्ता । ( दशम अध्याय समाप्त )
SR No.090432
Book TitleBhairava Padmavati Kalpa
Original Sutra AuthorMallishenacharya
AuthorShantikumar Gangwal
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Occult
File Size5 MB
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