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सावधान ! खतरा !
सावधान ! सर्वप्रथम मेरे विचार पढ़िये फिर आगे बढ़िये
ग्रंथ के टीकाकर्ता परमपूज्य श्री १०८ गणधराचार्य वात्सल्य रत्नाकर,
श्रमरणरत्न, स्याद्वाद केशरी कुंथुसागरजी महाराज के विचार एवं
पाशीर्वादात्मक मंगल बचन ।
इस अनादिनिधन जिनधर्म में द्वादशांग रूप श्रुतागम श्री भगवान आदिनाथ से लेकर महावीर पर्यन्त तीर्थङ्करों ने अपनी दिव्यध्वनि द्वारा प्रतिपादित किया, और उस वाणी को गणवरों ने ग्रंथित कर जन-जन तक पहुंचाया। उसी जिनागम को ही धत केवली और प्राचार्यों ने भी लिखित रूप से प्रतिपादित किया। वह जिनागम ११ अंग
और १४ पूर्व में वरिणत है । वर्तमान में जितना भी प्रागम मिलता है वह सब दृष्टिवाद अंग का ही सार है। यह जिनागम अभी तक आचार्य परम्परा से सुरक्षित यहां तक आया है, इसकी सुरक्षा करने की जिम्मेदारी हम लोगों की है।
___ बर्तमान में जीवों का परिणाम बहुत निकृष्ट हो गया है। प्रागम की बातों को मान्य नहीं करना चाहते । मेरा है वही ठीक है । मेरा मंतव्य ही सच्चा है । अपनी मान्यता को ही पुष्ट करना चाहते हैं। चारित्र संयम से दूर होते जा रहे हैं। प्रागम के ऊपर विश्वास नहीं है । सब तरफ संशय ही का बोलबाला है। मंशय मिथ्यात्व का ही ज्यादा जोर हो गया है । वर्तमान में कोई किसी की सही बात मानने को तैयार नहीं । लोगों ने जिनागम को ही तोड़-मरोड़कर रख दिया। और फिर वैसा ही अर्थ लगाते हैं। द्वादशांग तो नष्ट हो चुका । जो भी है वह भी नष्ट होता जा रहा है उपेक्षा बुद्धि से। मैंने अनेक