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{ १७१ ) इदानी स्तोभकरणमारभ्यते---
वह्निजलभूमि पवन ब्योमान बहपचद्वयं योज्यम् । स्तोभय युगल स्तोमं मध्यमिका चालनाद्भवति ॥७॥
(संस्कृत टीका)-'वह्निः उँकारः । 'जल' पकारः । 'भूमिः' क्षिकारः। 'पवन' स्वाकारः । 'व्योम' हकारः। 'अग्ने' एतेषां पञ्चबीजाक्षराणामने। 'दहपचद्वयं योज्यम्' दह दहेति पदद्वयं योज्यं, तबग्रे पच पचेति पदद्वयं योजनीयम् । 'स्तोभययुगलं' स्तोभय स्तोभयेति पदद्वयम् । 'स्तोभं' अनेन मन्त्रोच्चारणोच्चाटनेन? दष्टावेशः । कथम् ? 'मध्यमिका चालनात्' मध्यमाङ्ग ल्याश्चालनाद् । 'भवति' जायते ॥७॥ मन्त्रोद्धार :-उँ पक्षि स्वाहा वह दह पच पच स्तोभय स्तोभय ।
।। इति स्तोभन मन्त्रः ।। ।। इति स्तोभनविधानम् ॥
[हिन्दी टीका]-"ॐ पक्षि स्वाहा" इन पाँच बीजाक्षरों के आगे दह दह इन दो पदों की योजना करे, उसके आगे पच पच इन दो पदों की, फिर स्तोभय स्तोभय ये पद लिखे, इस मंत्र को मध्यमा अंगुलि को चलाते हुये उच्चारण करने से सर्पदंश का आदेग सकता है ।।७।।
मंत्रोद्धार :-"ॐ पक्षि स्वाहा दह दह पच पच स्तोभय ।।" इदानी विषस्तम्भनमुदीर्यते--
प्राद्यन्ते भूबीजं यध्ये जलवह्निमारतं योज्यम् । स्तम्भययुगलं स्तम्भो वामकराङ्ग ष्ठ चालनतः ॥८॥
(संस्कृत टीका)-'प्राद्यन्ते भूबीज' मन्त्रादौ मन्त्रान्ते पृथ्वीबीजम्-क्षि इति । 'मध्ये जलवह्निमारुतं योज्यं मन्त्रमध्ये प उ स्वेप्ति खोजत्रयं योजनीयम् । 'स्तम्भययुगलं' तदने स्तम्भयेति पदद्वयम् । स्तम्भः अनेन कथित मन्त्रोच्चारणेन विष प्रसर स्तम्भो भवति । कथम् ? 'वामकराल ष्ठ-चालनतः' स्वरामकराङ्ग ठचालनेन । मन्त्रोद्धार :-क्षिप उँ स्वाक्षि स्तम्भय स्तम्भय ॥ विषस्तम्भनमन्त्रः ॥
[हिन्दी टीका]-मंत्र के प्रारम्भ में और अंत में पृथ्वीबीज क्षि, मध्यमां, प, ॐ, स्वा, इन तीन बीज की योजना करके उसके आगे स्तम्भय २ ये दो पद लिखकर तैयार किया हुए मंत्र को बांए हाथ के अंगूठे पर जप करने से विष का स्तम्भन होता है ।।८।।
मंत्रोद्वार :-"क्षिप ॐ स्वाक्षि स्तम्भय ॥"