________________
{ १६६ ) सितकाञ्चनासित सुरचाप निभानि' पोत-हरिद्रनिभं, श्वेते-श्वेतवर्ण, काञ्चनं-सुवर्णवर्ण, असितं-कष्णवणं, सुरचापं-इन्द्रधनुर्वर्ण, निभानि-सरशानि । एवं पभ्वर्णबीजानि 'परि- : पाटयां' 'क्षि' बीजं पीतवर्ण पावद्वये, 'प' बीजं श्वेतवर्ण नाभी, उ बीजं काञ्चनवर्ण । हृदि, स्वा इति बीजं कृष्णवर्ण प्रास्ये, 'हा' इति बीजं इन्द्रघापवर्ण मूनि एवं कमेण पञ्चसु स्थानेषु विन्यसेत् ॥५॥ इत्यङ्ग न्यासक्रमः ।।
[हिन्दी टीका]-क्षिप ॐ स्वाहा इन पांच बीजों को पीला, सफेद, सूवर्ण, काला और इन्द्र धनुष जैसे नीलवर्ण इन पांचों वर्णों को दोनों पांव, नाभि, हृदय, मुख तथा मस्तक इन पांच अंगों के अन्दर अनुक्रमशः स्थापना करना ।।५।।
मंत्र स्थापन करने का क्रम:क्षि, बीज को पीलेरंग से दोनों पाँवों में स्थापन करे । प, बीज को सफेद रंग से नाभि में स्थापन करे। . ॐ, बीज को सुवर्ण रंग से हृदय में स्थापन करे । स्वा, बीज को काले रंग से मुख में स्थापन करे।
हा, बीज को नीलेरंग से मस्तक पर स्थापन करे । अतः परं रक्षाविधानं कश्यते
पवतुर्दलोपेतं भूतान्तं नामसंयुतम् ।।
दलेषु शेष भूतानि मायया परिवेष्टितम् ॥६॥
. ( संस्कृत टोका )-'पमकमलम् । 'चतुर्दलोपेतं' चतुः ‘पत्रयुक्तम् । 'भूतान्त' भूतानिपृथिव्यप्सेजोवारचाकाशसंज्ञानि तेषामन्त प्राकाशो हकारः, तं हकारं कणिकामध्ये । कथम्भूतम् ? 'नामसंयुक्त' दष्टनामगर्भीकृतम् । . 'वलेषु' बहिः स्थित ' . चतुर्दलेषु । 'शेष मूतानि' क्षिप उ स्वाहेति चतुर्बीजानि लिखेत् । 'मायया परिवेष्टितं' । तत्पनोपरि ह्रींकारेण त्रिधा परिवेष्टितं लिखिस्वा दष्टस्य गले बध्नीयात् । अथवा चन्दनेन दष्टवक्षः स्थले एतद्यन्नं लिखेत् ॥६॥ इति रक्षा विधानम् ।।
[हिन्दी टीका -एक चार दल का कमल बनावे, उसकी कणिकाओं में नाम सहित हकार को लिखे, उसके बाद चारों दलों में क्षिप ॐ स्वाहा लिखकर ह्रींकार से .. तीन बार वेष्टित करे, फिर क्रों कार से निरोध करे, इस यंत्र को चंदन से लिखकर दष्ट पुरुष के गले में बाँधे ।।६।। सर्प जहर नष्ट करने का यंत्र चित्र नं० ४२ । । १. त्रिभाया परिवेष्टितं इति व पाठः । 'त्रिमायामेष्टितं शुभम्' इत्यपि पाठः ॥