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________________ । १२३ ) विभ्रम विभ्रमेति पदद्वयम् । 'च' समुच्चये । 'मुह्मपदम्' मुच्च मुचेति पदद्वयम् । 'मोहय' मोहय मोहय इति पदद्वयम् । 'पूरणे :' सम्पूर्ण: । 'स्वाहा' स्वाहेतिपदम् । 'मन्त्रोऽयम्' अर्थ मन्त्रः 'प्रणव पूर्वगतः उकार पूर्वकः ।।२२।। मन्त्रोद्धार :-उँ भ्रम भ्रम केशि भ्रम केशि भ्रम माते भ्रम माते भ्रम विभ्रम विभ्रम मुह्म मुह्य मोहय मोहय स्वाहा । हिन्दी टीका]-भ्रम दो बार लिने, फिर केशि भ्रम केशि भ्रम लिखे फिर माते भ्रम माते भ्रम लिखे, उसके बाद विभ्रम विभ्रम लिखे, तदनन्तर मुह्य मुह्य लिखे, मोहय मोह्य को भी लिखे, प्रथम प्रणव ॐ को लिखकर अंत में स्वाहा से मंत्र पूर्ण करे ।।२२।। मंत्रोद्धार :- भ्रम २ केशिभ्रम २ मातेभ्रम २ विभ्रम २ मुह्य २ मोहय २ स्वाहा । एतेन लक्षमेधं भ्रमिमसम्प्राप्त सर्षपर्जप्त्वा । क्षिप्ते गृहदेहल्यामकालनिद्रां जनः कुरुते ॥२३।। [संस्कृत टोका]-'एतेन' कथित मन्त्रेण । 'लक्षमेकम्' एके लक्षम् । 'भूमिमसम्प्राप्तसर्षपः' भूम्यपतितसिद्धार्थ:। 'जप्त्वा' जपं कृत्वा । 'क्षिप्ते' निक्षिप्ते सति । क्य ? 'गृहदेहल्याम्' गृहोदुम्बरके । किं करोति ? 'अकाल निद्रा प्राकस्मिकनिद्राम् । 'जनः' लोकः । 'कुरुते' कुर्यात् ॥२३॥ [हिन्दी टीका]-इस प्रकार कहे हुये मंत्र को भूमि पर नहीं गिरे हुए सफेद सरसों से एक लक्ष जाप्य करे और उन सरसों को घर की देहली (चौखट) फेंक दे तो घर के सब लोग अकालनिद्रा को प्राप्त हो जाते हैं । यानी सब सो जाते हैं ।।२३।। रण्डायक्षिणी सिद्धि मृतविघवाब्राह्मण्याः पादतलालक्तकेन परिलिखितम्। सद्वक्त्रपिहित वस्त्रे विधवारूपं निराभरणम् ॥२४॥ [ संस्कृत टीका ]-'मृत विधवा' पञ्चत्वप्राप्त रण्डायाः, कस्याः ? 'ब्राह्मण्याः द्विजकुल प्रसूतायाः । पादतलालक्तकेन' तस्याः पावतलालक्तकेन । 'परिलिखितम् समन्तात् लिखितम् । क्व ? 'तद्वक्त्रपिहितवस्त्रे' तन्मृतरण्डामुखप्रच्छादितयसने । कम् ? 'विधवारूपम्' रण्डारूपम् । 'निराभरणम्' प्राभरणरहितम् ॥२४॥
SR No.090432
Book TitleBhairava Padmavati Kalpa
Original Sutra AuthorMallishenacharya
AuthorShantikumar Gangwal
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Occult
File Size5 MB
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