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[हिन्दी टीका]-याट छोटी कंकरियों लेकर निम्न लिखित मंत्र से मंत्रित कर पाठों दिशाओं में फेकने वाले बुद्धिमान व्यक्ति को अरण्य में अथवा अन्य जगह भयंकर पशु जीवों से होने वाला भय नष्ट हो जाता है ।।१७।।
अरिष्ट नेमि मंत्र :-ॐणामो भयवदो प्ररिट्ठणेमिस्स बंधेण बंधामि रक्खसाणं भुयारणं खेयराणं दाढी महोरगाणं, अपणे जे के वि दुट्ठा संभवंति तेसिं सव्वेसि मर्ग मुहं गहं दिठ्ठि बंधामि धणु धणु महाधणु-२ जः जः जः ठः ठः हुं फट् ।।
नोट :-इस मंत्र में भी नाना प्रकार का पाठान्तर मिलता है लेकिन हमने पूर्ण शुद्ध करके लिखा है।
स्मरबीजयुतं शून्यं तत्त्वे कारवेष्टितम् ।। भाह्यऽष्टदलमम्भोज नित्यक्लिन्न! मदद्रवे ॥१८॥ मदनातुरे! घडिति विलिखेत् स्वाहान्तविनयपूर्वेण । त्रिभुवनयश्यमवश्यं प्रतिदिवसं भवति संजपतः ॥१६॥
[संस्कृत टीका]-'स्मरबोजयुतम् क्ली कारयुतम् । कि तत् ? 'शून्य' हकारम् । एवं हक्लो इति बीजम् । पुनः कथम्भूतम्? 'तत्त्वेनै कारवेष्टितम्' ही कारेणेकारेण वेष्टितम् । 'बाह्य' तदेकारबाह्य 'अष्टदलमम्भोजम्' अष्टदलकमलं लिखेत् । 'नित्यक्लिन्ने! मददये ! मदनातुरे ! 'वषड्' इति मन्त्रं तहलेषु लिखेत् । 'स्वाहान्त विनयपूर्वेण' स्वाहाशब्दमन्त्य उकारं पूर्व कृत्वा लिखेत् । त्रिभुवन वश्यम्' भुवनत्रयवश्यम्' 'अवश्यं निश्वितम् 'प्रतिदिवसम्' दिन दिन प्रति 'भवति' स्यात् । 'संजपतः' सम्यग् जपं कुर्वतः पुरुषस्य ।।१८।।१६।।
____ मन्त्रोद्धार :-उहक्लो ह्रीं ऐं नित्यक्लिन्ने ! मददवे । मदमातुरे ! ममामुकीं वश्यावृष्टि कुरु कुरु वषट् स्वाहा ॥
[हिन्दी टीका]-हाक्ली बीज को ह्री और ऐं से वेष्टित करके बाहर अष्ट दल कमल बनाने उस अष्टदल कमल में नीचे लिखा मंत्र लिखे, फिर उसी मंत्र का प्रतिदिन जप करने से तीनों लोक्रां के जीव वश होते हैं ।।१८।।१६।।
मंत्रोद्धार :-ॐ हक्ली ह्री ऐ नित्ये क्लिन्ने मदद्रो मदनातुरे ममामुकी वश्यावृष्टि कुरु कुरु वषट् स्वाहा ।।।
त्रिभुवन वणिकरण यंत्र चित्र नं. ३५ ।