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रही । इस को अच्छी तरह अदा करने में मेरे से त्रुटि हो गयी हो तो उस के लिये क्षमायाचना । प्रेसको: का सम्पादन संशोधन { निरीक्षण) कार्थ हो जाने के बाद पूज्यपाद गुरुदेवश्री विजयभुवनभानुसूरीश्वरजी महाराजा भी उसका सूक्ष्म दृष्टि से जांच निरीक्षण कर लेते थे, जिस से कोई त्रुटि रह गयी हो तो वह निकल जाय । कइ जगह आपने भी आवश्यकतानुसार टिप्पण लिखे हैं । प्रथमम्तवक्र में कई टीपण पडितजीने अपने आप मी लिखे हैं ।
शद्धप्रेसकोपी के लेखनकार्य में स्व. मुनिश्री द्वितश्वर विजय महाराज का अच्छा सहकार निःसंकोच मिलता रहता था।
पहले स्तबक का मुद्रण अमदावाद में गमानन्द प्रिन्टींग श्रेस में हुआ । २-३-४ स्तबकों का मुद्रण पिंडवाडा (राज.) ज्ञानोदच प्रिन्टींग प्रेस में हुआ । ५-६-७-८ और नववे स्तबक का मुद्रण व्यावर (राज.) गौतम आर्ट प्रिन्टर्सने किया । १० और ११ व स्तबक का मुद्रण भरत प्रिन्दरी अमदावाद में हुआ-इस प्रकार अमदाबाद से मुद्रणयात्रा का प्रारम्भ और अमदावाद में ही उस की ममामि हुनी । ये सभी मुद्रक धन्यवाद के पात्र बने हैं ।।
हिन्दी विवेचन के निर्माण में एवं पूरे अन्य के मुद्रण में विविध ग्राम नगरों के जन ने. मू. जैन संघों के ज्ञाननिधि में से अच्छा आर्थिक सहयोग मिला है । वे मी संघ भी धन्यवाद के पात्र हैं । प्रत्यक्ष या परोक्षरुप से दूर निकटवर्ती मुनिद का जो कुछ सहयोग मिला है. वह आवस्मरणीय है। पूज्यपाद स्व. आ. श्री प्रेममृरावरजी महाराजा, प. पृ. आ. श्री भुवनभानुसूरि महाराजा, प. पू. मुनिराजश्री धर्मोपविजय महाराज एवं उनके शिष्यरत्न प.पू.आ. श्री जयघोषसू रिमहाराजा इन सब गुरुदेवों की कृपा से किये गये इस विशाल प्रन्थ के संशोधन सम्पादन कार्य से जो कुछ पुण्यार्जन हुआ इस से भव्यजनों को अज्ञानविरह हो यही शुभेच्छा । वि. स. २०४४ ।
लि० जयसुंदरविजय कोल्हापुर
संकेतसूचि वृहत्संग्रहणी
सामाचारीप्रकरण पच्च. नि. यू. पच्चकखाणनियुक्ति चूणि
वा. प.
वाक्यपदीय त. सं. तत्यसंग्रह
भ्या . कु. न्याय कुसुमाञ्जलि श्लो. वा. लोकवार्तिक
प्र. तार योगदृष्टिसमुच्चय
प्रधधनसार प्र. बा. प्रमाणवासिक
श्रा. प्र.
श्रापकप्रशनि उप. माला उपदेशमाला
स्था .
स्थानाङ्ग वि. आ. विशेषावश्यकमाध्य
प्र. र.
प्रशमरति आवश्यकनियुक्ति
ल. वि. ललितविस्तरा त. स. तत्त्वार्थमन
दशवे. दशवकालिक अ.म. प. अध्यात्ममतपरीक्षा
भाषा.
आषाराज
सामा.
यो. सं.
आ. नि,