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________________ ३०४] [ शासवार्ताः स्त० ११,५०-३२ मृत्यादिवर्जिता चः-मृत्यु-जरा-जन्मवर्जिता च इह-प्रवचने मुक्तिः कर्मपरिक्षयात् सर्वथा कर्मविगमात्, तदभावे च कारणं बिना कार्यानुत्पत्तेरुक्तोपपत्तेः । तदाह-न अकर्मण:कर्मरहितस्य क्वचित् जन्म-सम्मूर्च्छनोत्पत्त्याविरूपम् , जन्मनो गत्यादिकर्मनिमित्तत्वात् ; यथोक्तं पूर्वसूरिभिः उमास्वातिप्रमुखैः ॥४९॥ विभुक्तम् ! इत्याह-[ तत्वार्थकारिका. लो०८ ] दग्धे बीजे यथात्यन्त प्रादुर्भवति नाङ्कुरः । कर्मचीजे तथा दग्धे न रोहति भवाङ्करः ॥५०॥ अत्यन्त निःशेषतया दग्धे बीजे-शास्यादिबीजे यथाऽजुरः शाश्यङ्कुरः न प्रादुर्भवति; तथा कर्मवीजे-ज्ञानावरणादिप्रकृतिमये अत्यन्तं दम्ये सति भवानर-नारकाद्यग्रिमभवः ‘न प्रादुर्भवति' इति योज्यम् ॥५०॥ जन्मभावे जरा-मृत्योरभायो हेत्वभावतः । तदभावे च निःशेषदुःखाभावः सदैव हि ।।५१॥ जन्माभावे जरा-मृत्योः वयोहान्याऽऽयुःक्षयलक्षणयोः अभाव: अनुत्पत्तिः , हेत्वभावत:कारणाभावात् , जन्मावस्थारूपत्वात् तयोः । ततः सिद्ध मृत्यादिवर्जितत्यम् । तदभावे च-त्याद्यमावे च निःशेषदुःखाभावः रोग-शोका दिसकलदुःखविरहः, सदैव हि-आकालमेब । एवं च दुःखोद्विग्नानानां मुक्त्यर्थप्रवृत्तिरुपपादिता भवति ॥५१|| न चवमभावकमयी मुक्तिरित्याहपरमानन्दभावश्च तदभावे हि शाश्वतः । व्याबाधाभावसंसिद्धः सिद्धानां सुखाच्यते ॥ ५२ ॥ मुक्ति मृत्यु-जन्म-जरा आदि से रहित होती हैं, और यह सम्पूर्ण कर्मों के नाश से सम्पन्न होती है। कर्म ही जन्म का कारण है और कारण के अभाव में कार्य का जन्म नहीं होता, यह नियम है । अतः समय कर्मों का नाश हो जाने पर पुनर्जन्म नहीं होता, जैसा कि उमास्त्राति आदि पूर्व विद्धानों ने कहा है ॥ १९ ॥ ५० वीं कारिका में पूर्व विद्वानों का कथन अङ्कित किया गया है । जो इस प्रकार है बीम के पूर्णरूप से दग्ध हो जाने पर जसे धान्यादि का अङ्कर नहीं उत्पन्न होता है उसी प्रकार कमीज के सम्पूको रूपसे दग्ध-नष्ट हो जाने पर भव का नरक आदि अग्रिम अङ्कर भी नहीं उत्पन्न होता है ॥ ५० ॥ जन्म का अभाव होने पर वय की हानिरूप जगा और आयु की समाप्तिरूप मृत्यु के भी कारण का अभाव होने से अभाव हो जाता है। क्योंकि जरा और मृत्यु जाम की ही अवस्थाएं है । जरा और मृत्यु का अभाव होने पर रेग, शोक आदि समस्त दुःखों का अभाव सबंदा के लिए हो जाता है । मुक्ति में दुःख आदि न होने से ही दुःख से उद्विग्न मनुष्यों की मुक्ति के उपायों के अनुदान में प्रवृत्ति होती है ।। ५१ ॥ [मुक्ति में शाश्वत परमानन्द ] ५२ वीं कारिका में यह बताया गया है कि मुक्ति एक मात्र अभावमय नहीं है। कारिका का अर्थ इस प्रकार है
SR No.090423
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 9 10 11
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size16 MB
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