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________________ स्था. क. टीका-हिन्दी विवेचन ] [ २९५ क्रियायामपि तुल्यत्वादिति भावः । यदि च फलमनुपदधानं ज्ञानं ज्ञानमेव तत्त्वतो नेष्यते, तदा फलमनुपदधती क्रियापि क्रियेति नोच्यत एवेत्यभावातही न ज्ञात किययोः, तद्भावः = ज्ञानक्रियाव्यपदेशः, परमार्थेन - निश्चयेन नान्यथा- न तद्योगमन्तरेण, फलानुपहितस्य सतो - कारणत्वात् कुशूलस्थचीजाऽवीजयोरविशेषात् कारणस्य च सतः फलोपहितत्वात् क्षेत्रस्थवीजवदितिभावः ।। ३९ ।। एतदेवाह - I 2 साध्यमर्थ परिज्ञाय यदि सम्यक् प्रवर्तते । ततस्तत्साधयत्येव तथा चाह बृहस्पतिः ॥ ४० ॥ साध्यमर्थं परिज्ञाय - इष्टत्वसाध्यत्वादिना प्रमाय यदि सम्यक् परिज्ञानानुसारेण, प्रवर्तते साध्योपाये, ततः तत् = अधिकृतं साध्यम् साधयत्येव तथा चाह वृहस्पतिरेतत्संवाद ।। ४० ।। 'सम्यक्प्रवृत्तिःसाध्यस्य प्राभ्युपायोऽभिधीयते । तदप्राप्ताबुपायत्वं न तस्या उपपद्यते ||४१ || ' सम्यक् प्रवृत्तिः = सम्यग्ज्ञानपूर्विका क्रिया साध्यस्य इष्टार्थस्य प्राप्युपायोऽभिवीचते । तदप्राप्तौ = साध्याऽप्राप्तौ सत्याम् उपायत्यम् = अधिकृत साध्यहेतुत्वम् न तस्याः =सम्यक् प्रवृत्तित्वाभिमतायाः, उपपद्यते; अतो नासौ सम्यक् प्रवृत्तिरेवेति भावः ॥ ४१ ॥ फलितार्थमाह--- 1 असाध्यारम्भिगस्तेन सम्यग्ज्ञानं न जातुचित् । साध्यानारम्भिणश्चेति द्वयमन्योन्य संगतम् ॥४२॥ असाध्यारम्भिणस्तेन कारणेन सम्यग्ज्ञानं तत्त्वनीत्या न जातुचित्, फलावच्छिन्नवृत्त्यनन उत्तरार्ध की व्याख्या इस प्रकार है ।ज्ञान और क्रिया में ज्ञान और क्रिया शब्द का व्यवहार भी परमार्थतः वानी निश्चय से फलाधान के अभाव में नहीं होता, क्योंकि जो फल से युक्त नहीं होता वह कारण नहीं होता । यह भी इसलिये कि कुशलस्थ बीज और अबीज यह दोनों अनुत्पादक के रूप में समान ही हैं जो कारण होता है वह निश्चित रूप से क्षेत्रस्थ बीज के समान फलयुक्त ही होता है ॥ ३९ ॥ ३९वीं कारिका में उक्त अर्थ को ही ४०चीं कारिका में प्रकारान्तर से कहा गया है । कारिका का अर्थ इस प्रकार है इष्टत्व, साध्यत्व आदि रूप से फल का सम्पक् ज्ञान प्राप्त कर मनुष्य यदि साध्य के उपाय में ज्ञानानुसार प्रवृत्त होता है तो प्रवृत्ति का त्रिषयभूत साधन निश्चितरूप से लाध्य की मिद्धि सम्पन्न करता ही है । यह बात बृहस्पति ने भी कही है ।। ४० ।। सम्यकशान के अनुसार की गयी क्रिया को प्राप्ति का उपाय कहा जाता है । साध्य की प्राप्ति न होने पर सम्यक किया के अभिमान से अनुष्ठित क्रिया में साध्य की हेतुता नहीं उपपन्न होती । इसलिए ऐसी क्रिश सम्यक क्रिया नहीं है ॥ ४१ ॥ ४२वीं कारिका में पूर्वोक कारिका के कथनों का फलित अर्थ बताया गया है । कारिका का अर्थ इस प्रकार है
SR No.090423
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 9 10 11
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages497
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size16 MB
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