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- शुद्धिप्रदर्शिका :
पृष्ठ पंक्ति
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२७ २७ ३० ११
अशुद्ध भेदबद्धि भेदबुद्धि प्रीतीति प्रतीति पृथ्वोव्या पृथीच्या महीं ह नहीं है अक्षण्ण প্রসূ वेदान्द वेदान्त क्वचित् 'क्वचित् स्त्रंत्र सर्वत्र चतत्य चैतन्य मूल ज्ञान मूलाज्ञान मत है ति मत है कि घंट ज्ञानस्य घंटाऽज्ञानस्य सात्व
सत्त्व प्रातांबम्ब प्रतिबिम्बार अस्मतपद अस्मस्पद प्रतीसंधीयते प्रतिसंधीयते बिम्भभूत
बिम्बभूत
अंश में मुखभाव मुखाभाव व्यव था व्यवस्था शक्तिकों शक्तियों (=ब्रह्मा ने मन) ब्रह्म ने मन पाप्म दि पाप्मादि उन के उन का हीप्रतिपादन ही प्रतिपादन उपाघरे- उपाधेरचक्षुइः' चक्षुः'इअपात्ति आपत्ति वह्न, युशे वह न्यशे एवैश्वरस्यापि एवेश्वरस्यापि । हो होता ही होता भाव के भान के र्गाद्यत्वेन ग्राह्यत्वेन
पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध ५८ ६ पासना उपासना
श्रुत्वा श्रुत्या ७१ २४ अनुगठन अनुष्ठान
विदेश विशेष
बाक्यक्वा वाक्यकवा ९१ २० वह दुःशक्य है,
क्योंकि xxxx विशिण्ट विशिष्ट
इय भेव इयमेव १२ २६ अभेदा अभेद ६६ २७ पदर्थाभ्यां पदार्याभ्यां १०० २९ साक्षात्, साक्षात् १०० ३० श्मनिवा श्मनि वा
त्रयाँ प्रपा १०४ २१ ह्यात्मक द्वयात्मक १०६ १७ तायाज्ञान ताया ज्ञान १०७ १० मिथ्यात्वनिमित्तं मिथ्यात्वं
मिथ्यात्वे निमित्तमिथ्यात्वे १०८ १ विषयक के विषय के
सर्पोत्पत्त्य १०८ २१ विवयन्दे विषयत्वे ११० ६ लक्षण लक्षणा ११२ २० इदमेव इदमेव ११७ ८ भेकत्वे मेकत्वे १२० ३२ तब जो तब तो १२२ ७ प्रतीत्याग प्रतीत्य याग १२३ २७ नामक नात्मक १२५ २१ स्वफुरणसभा स्फूरणस्वभा १२५ २४ उस से उस के १२८ १२ ग्रहेणे ऽग्रहेण १३२ ३-४ इश्वरादि में और
प्रतियोगिविधया स्वविषयावरण
अंश
३२ १८ ३२ २२ ३२ ३२
३४ २७ ३६ २८
४० १४
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४६ १६ ४६ २८
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