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स्या० का टीका एवं हिन्दी विवेचन ]
ज्ञानसिद्धयर्थ 'स्वदेशगते'ति । मिश्याझानं व्यावर्तयितुं 'वस्त्वन्तरे'ति । हेतावपि द्वितीयादिधारावाहिकजाने व्यभिचारवारणाय 'अप्रकाशिते'ति । अप्रकाशितप्रकाशशब्देन म्वविषयावरणनिवृत्तिरूपो व्यवहारो विवक्षितः, न च धारावाहिकद्वितीयादिज्ञाने तद्धेतुत्वमस्ति, स्वविषयावरणनिवृत्तेराधनानकायवाद।
[ 'स्वप्रागभावपतिरिक्त' विशेषण की सार्थकता ] ज्ञानप्रागभाव को लेकर सिद्धसाधन अथवा अर्थान्तर का वारण करने के लिये साध्य में आद्यविशेषण 'स्वप्रागभावव्यतिरिक्तत्व' का निवेश किया गया है। यदि यह कहा जाय कि-"स्वनिवर्त्य पद से ही उसकी व्यावत्ति हो जायगी क्योंकि प्रमाणज्ञान के प्रागभाव को निवृत्ति प्रमाणज्ञान से भिन्न नहीं कितु तद्रूप ही है, अतः स्वजन्यनिवृत्तिप्रतियोगित्वरूप 'प्रमाणज्ञान से निवर्त्यत्व' उस के प्रागभाव में नहीं रहेगा"-तो यह ठीक नहीं है। क्योंकि 'ध्वंस सादिजन्य और अनन्त=अबिनाशी होता है।' इस मत में प्रमाणज्ञान के प्रागभाव को निवृत्ति प्रमाणज्ञानस्वरूप नहीं हो सकती, क्योंकि प्रमाणज्ञान विनाशो है। अतः स्वनिवर्त्य पद से प्रागभाव का व्यवच्छेद सम्भव न होने से आद्य विशेषण कर उपादान आवश्यक है। 'विभु के प्रत्यक्षयोग्य विशेषगुण स्वोत्तरवर्ती गुण से नाश्थ होते हैं। इस सिद्धान्त के अनुसार भिन्नविषयक पूर्वज्ञान उत्तरज्ञान से निवर्त्य होता है अतः प्रमाणज्ञान के पूर्वज्ञान को लेकर सिद्धसाधन का वारण करने के लिये 'स्वविषयावरण' विशेषण दिया गया है। इस विशेषण के देने से पूर्वज्ञान का ग्रहण नहीं हो सकता क्योंकि जिसके रहने पर जिस ज्ञान के विषय का स्फुरण नहीं होता बहो उस ज्ञान के विषय का प्रावरण होता है । पूर्वजान उत्तरज्ञान के विषय का प्राधरण नहीं होता क्योंकि वह उत्तरज्ञान के विषय के स्फुरणाभाव का प्रयोजक नहीं होता।
[ 'स्वनियत्य' विशेषण की सार्थकता ] असम्भावना प्रयोजक एवं विपरीत भावनाजनक अदृष्ट को व्यावत्ति के लिये तोसरा विशेषण 'स्वनिवर्त्यत्व' का उपादान किया गया है। इसका निवेश न करने पर 'तादृश अन्य वस्तु' पद से असम्भावना प्रयोजक और विपरीतभावना के जनक अदृष्ट को पकड़ा जा सकता है । किन्तु यह भी असम्भावना-विपरीतभावना के द्वारा प्रमाणज्ञान के विषय का आवरण होता है, तथा प्रमाणज्ञान के प्रागभाव से व्यतिरिक्त और प्रमाणज्ञान का समानाधिकरण होता है। अतः प्रमाणज्ञान में तत्पूर्वकत्व रहने से सिद्धसाधन दोष को प्रसक्ति हो सकती है। किन्तु, स्वनियंत्य विशेषण देने पर यह दोष नहीं होगा, क्योंकि अदृष्ट स्वकार्य से निवर्त्य होने के कारण उक्त अदृष्ट प्रमाणज्ञान से निवर्त्य नहीं होता।
[ 'स्वदेशगत' विशेषण की सार्थकता ] साध्य में 'स्वदेशगतत्य स्वसामानाधिकरण्य' विशेषण इसलिये दिया गया है, जिससे प्रमाता में अज्ञान को सिद्धि हो । अन्यथा 'स्व प्रागभावव्यतिरिक्त स्वविषयावरण स्थनियय अन्य यस्त' शाम्य से विषयचैतन्यगत अजान को लेकर सायसिद्धि का पर्यवसान हो जाने से प्रमातृगत अज्ञान की सिद्धि अवरुद्ध हो सकती है। यस्त्वन्तर (अन्य बस्तु) शब्द न देने पर मिथ्याशानपूर्वफत्व को लेकर सिद्ध साधन प्रथया अर्थान्तरदोष की प्रसक्ति हो सकती है। किन्तु चस्त्वन्तर (अन्य वस्तु) विशेषण देने