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________________ [ शास्त्रवाल० त०] ७ हलो २३ ● १६२ भङ्ग की प्रवृत्ति होती है। यदि नेत्रजन्यबोध के विषय क्षणिक घट को अन्य वियजन्यप्रतिपतिविषय से भी सद माना जायगा तो एकघट व्यक्ति में दो इन्द्रियों का संकर होगा जो प्रमाणaurस्थावानी बौद्धको अभिष्ट है। यदि क्षणिक घट को नेत्रजन्यप्रतिपत्तिविषयत्वरूप से भी असत् मामा जायगा तो वह मायु प्रावि के समान अरूप हो जाएगा। घट के सर्वथा सत्य या मसस्वरूप एकातपक्ष में भी यही दोष होता है, अतः एकान्त सत् अथवा एकान्तमसत् वस्तु असिद्ध होने से उस पक्ष में सर्व अवयव को प्रसक्ति होती है । अथ I दृश्यमान एव घटे घटशब्दवाच्यता एवं रूपम् कुटशब्दाभिधेयत्वं पररूपम्, ताभ्यां सदसस्वात प्रथम द्वितीयो । युगपत्ताभ्यामवितोऽवाच्यः । यदि हि घटशन्दवाच्यत्वेनेव छुटशब्दवाच्यत्वेनापि घटः स्यात्, तर्हि त्रिजगत एकशब्दवाच्यताप्रसक्तिः घटरूप वाऽशेषपटादिशब्दवाच्यत्वप्रसक्तिः, पटवाव्यताप्रतिपत्ती समस्तवाचक शब्दप्रतिपत्तिप्रसंगध । घटपदेनापि यद्यवाच्यः स्मात् सदा घटशब्दोचारणयप्रसक्तिः । एकान्ताभ्युपगमेऽपिघटस्यैवासनात् तद्वाचकशब्दसंकेताभाचादवाच्य एव । " [ ७- घटादिशब्दवाच्यतारूप से भंगत्रय ] अथवा यह भी कहा जा सकता है कि वश्यमानघट का घटनाका रथ रूप है और फुटवाला पर रूप है। अतः घटादवाच्यत्वात्मक स्वरूप से घट का सत्व बताने के लिये प्रथममङ्गः कुटशल्यकिश्वात्मक पर रूप से घट का असत्य बताने के लिये द्वितीय और उन दोनों रूपों से घट की पुगपद विवक्षा होने पर उक्त रूपों से घर की युगपद श्रसाध्यता बसाने के लिये तृतीयभङ्ग की प्रवृत्ति होती है। इस संदर्भ में यह ज्ञातव्य है कि समान घट घट शब्दवाच्यस्वरूप से ही पक्ष होता है क्योंकि यदि उसे कुटशब्द वाकयस्वरूप से भी माना जायगा तो लोक की समस्त वस्तुओं में प्रत्येकशन माता को आपत्ति होगी अथवा घट में पटविशेष शब्द को वाक्यता की प्रसक्ति होगी। जैसे घट को देखकर घटराग्यष्यता को प्रतिपति होती है से उक्त रीति से समस्त navi के घearee हो जाने से समस्त शब्दों की बाध्यता की प्रतिपत्ति का प्रसङ्ग होगा तथ यदि घट को प्रत्य शब्दों से अवास्य मानने के समान घट शब्द से भी अवास्य माना जायगा तो घट शब्द का उच्चारण व्यर्थ होगा । अतः घट को घटादवाध्यत्वेन रूस और कुटादि शब्दभाश्यश्वेम असद मानना आवश्यक है। एकान्तवादी के पक्ष में भी घट अध्य ही होगा क्योंकि उस पक्ष में घट ही असद होता है। अतएव उसके बाधक किसी शब्द का संकेत नहीं हो सकता । अथवा, घटशब्दाभिधेये तत्रैव घटे हेयोपादेयान्तरङ्गत्वरित्रोपयोगानुपयोगरूपतया सदसवात् प्रथम- - द्वितीय। ताभ्यां युगपदादिष्टोऽवाच्यः । यदि हि देयादिरूपेणाप्यर्थ क्रियाक्षमादिरूपेणेव पटः स्यान् पटादीनामपि पटस्वरसक्तिः । यदि चोपादेयादिरूपेणाध्यघटः स्यात् अन्तरकस्य वक्तु श्रोतृगतहेतु-फलभृत घढाकाराच बोध कविकल्पोपयोगस्याप्यभावे घटस्याभावः । एकान्ताभ्युपगमेऽयमेव शेष इत्यवाच्यः । + [ = - उपादेयादिरूप से मंगत्रय का प्रतिपादन ] प्रथवा यह भी कहा जा सकता है कि घटथ्याभिषेष घट में उपाश्यप जलाहरणावि रूप
SR No.090421
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 7
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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