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स्था० क० टीका एवं हिन्दी विवेचन ]
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'अस्ति'- 'नास्ति' इति धीविषयत्वेन विशेषसंभवात् । यदपि 'अभावात्मकतयैव चासौं भवतीति च व्याहतमेतत्' इति तदपि तुच्छम् अभावपदस्याभवनरूपक्रियार्थत्वाभावात्, भावत्वस्य भावपदस्येवाभावत्यस्यैवाभाव पदस्य प्रवृत्तिनिमित्तत्वात्तुः अन्यथा 'भावो भवति' इति 'भवनं भवति' इतिवद् निराकाङ्क्ष स्यात् । अथ 'नास्ति' इति धीविषयत्वादेव शशविषाणादिवद् न नाशः कार्यइति त् ? 'अस्ति' इति धीविषयत्वादाकाशादिवद् घटादिरपि न तथा स्याद्; हेत्वन्वयव्यतिरेकानुविधानं चोभयत्र तुल्यमिति ।
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[ अभाव भाव हो जाने की आपत्ति का प्रतिकार ]
बौद्ध की ओर से अभाव को सहेतुक मानने पर जो यह दोष दिया गया है कि- 'अभाव को भवनशील मानने पर वह भावरूप होगा प्रर्थात् प्रभाव को हेतुव्यापार के अनन्तर भविता यानी भवनशील मानने पर अभाव भावरूप हो जायगा' यह दोष भी उचित नहीं है क्योंकि अभाव भवनशील होने पर भी अभाव प्रतीति का विषय होने से उसको अभावरूपता में बाधा नहीं हो सकती । प्राशय यह है कि जैसे घट और पट दोनों ही भावशील होने से समान है फिर भी 'यह घट है' और 'यह पट है' इस प्रकार विभिन्न ज्ञान के विषय होने से उनमें घटत्व-पटत्व इन विशेषरूपों को सिद्धि होती है। उसी प्रकार भाव और प्रभाव दोनों भवनशील होने से समान होने पर भी प्रस्ति नास्ति इन विभिन्न ज्ञानों का विषय होने से भाव की सद्रूपता और अभाव की सद्रूपता यानी अभावरूपता इस प्रकार का विशेष निर्विवाद है।
[ अभाव और भवनशीलता में कोई विरोध नहीं है ]
इसी प्रकार बौद्ध की ओर से प्रभाव को भवनशीलता मानने पर जो यह दोष दिया गया कि- 'घटादि का विनाश अभावात्मकरूप से भवनशील होता है यह वचन व्याहत है, क्योंकि अभावात्मकता और भवनशीलता में विरोध है । तो यह दोष भी तुच्छ है। क्योंकि यह दोष तभी हो सकता
जब भवनरूप क्रिया के विरोधी अमवनरूपक्रिया को प्रभावपद का अर्थ माना जाय । किन्तु भावत्व जैसे भावपद का प्रवृत्ति निमित्त होता है उसी प्रकार अभावत्वरूप धर्म को अभाषपद का प्रवृत्ति निमित्त मानने पर वह दोष नहीं हो सकता, क्योंकि भावत्य और अभावत्व इन धर्मो में विरोध असिद्ध है। यदि यह कहा जाय कि भायपद का दृष्टान्त उचित नहीं है क्योंकि भावपद का प्रवृत्ति निमित्तभूत भाव भी कोई अतिरिक्त धर्म न होकर भवन क्रियारूप ही है तो यह ठीक नहीं है क्योंकि भवन क्रिया को भावपद का प्रवृत्ति निमित्त मानने पर 'भावः भवति' यह वाक्य भी 'भवनं भवति' इस वाक्य के समान निराकांक्ष हो जायगा ।
कहने का तात्पर्य यह है कि 'भवनं भवति' इस स्थल में भवनशब्दार्थ में भवति शब्दार्थ भवनक्रिया की श्राश्रयता का अन्वय मानने में यह वाक्य प्रयोग्यार्थक होगा और सूधात्वयं भवन क्रिया शब्दार्थ का तादात्म्य से अन्वय मानने पर वाक्य निराकाङ्क्ष होगा । उसी प्रकार 'भाव: भवति' इस स्थल में भी भावशब्द को भावप्रत्ययान्त मानने पर उसका अर्थ भवनक्रिया होगा और उसमें भवति शब्दार्थ भवनक्रिया की साश्रयता का अन्वय करने पर वाक्य प्रयोग्यार्थक होगा तथा