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"प्रारम्भिक"
शास्त्रवार्ता समुच्चय टीका स्याद्वादकल्पलता का हिन्दी विवेचन १-२.३-८ ये चार स्तबकों के प्रकाशन के बाद अब तो इस ग्रश की मोर विहवर्ग अन्ती दरद थाकष्ट हो चुका है और इस ग्रन्थ रत्न की गरिमा एवं ग्रन्थकार-व्याख्याकार की उज्ज्वल प्रतिभा से भली भांति माहीतगार हो गया है। अत: उस के लिये पुनरुक्ति करना व्यर्थ होगा ।
प्रथम तीन स्तबकों में नास्तिक आदि वार्तामों की समीक्षा के बाद ग्रन्थकार विस्तार से बौद्धमत की समीक्षा के लिये सज्ज बने हैं। ग्रन्धकार के काल में बौद्ध दर्शनों का अन्य दर्शनों के साथ व्यापक संघर्ष चल रहा था। खुद ग्रन्थकार के साथ भी वे टकरा गए थे और ग्रन्थकार के सामने उनको घोर पराजय बरदास्त करना पड़ा था। इतना होने पर भी मलकार श्री हरिभद्रसूरि महाराज ने बौद्धमत की समीक्षा में न तो बौद्ध के प्रति कोई दुर्भाव का प्रदर्शन किया है, न अपने उत्कर्ष का । यही महापुरुषों के जीवन की महान् विशेषता है। अन्य मत के सिद्धान्तों की आलोचना और उन सिद्धान्तों में दृश्यमान त्रुटिओं के प्रति अंगुलीनिर्देश, त्रुटिओं का समार्जन यह तो प्रत्येक विद्वान के लिये सत्कार योग्य है ।
बौद्ध दर्शन में पदार्थमात्र को क्षणभंगुर माना जाता है, सामान्य अथवा अवयवी जैसी किसो भी चीज को ये नहीं मानते । प्रत्यक्ष और अनुमान केवल दो ही प्रमाणरूप में माना गया है । बौद्धों में चार प्रमुख सम्प्रदाय हैं-सौत्रान्तिका, वैभाषिक-योगाचार और माध्यमिक । सौत्रान्तिक और वैभाषिक में प्रधान मतभेद यह है कि पहला बारार्थ को प्रत्यक्ष मानते हैं, दूसरा उस को अनुमेय मानता है । योगाचार मत वाले बाह्यार्थ के अस्तित्व को मानते ही नहीं, उन का कहना है कि ज्ञान के साथ हो बाह्यार्थ का अनुभव होने से ज्ञान से अतिरिक्त बाह्याथं की सत्ता ही नहीं है। माध्यमिक संप्रदाय
दी है-उस के मत में सर्वाकार शन्य संवित से अतिरिक्त कछ भी सत्य नहीं है। नाश को बौद्धमत में निरन्वय यानी निर्हेतुक माना जाता है। निरन्वयनाश शब्द यद्यपि निरवशेष नाश जिसमें वस्तु नाश के बाद कुछ भी शेष बच नहीं पाता इस अर्थ में भी देखा गया है किंतु प्रस्तुत ग्रन्थ में यह अप्रस्तुत है।
बौद्धमतवार्ता के लिये मुल ग्रन्थकार ने ग्रन्थ में सब से अधिक कारिका बनायी हैं। चौथेपांचवे और छठे स्तबक में केवल बौद्ध मतवार्ता की ही चर्चा की गयी है । चौथे स्तबक के प्रारम्भ में बौद्धमतवार्ता के उपक्रम में क्षणिकवाद और विज्ञान वाद का उल्लेख किया है । दूसरी कारिका में क्षणिकत्व साधक बौद्धाभिमत चार हेतुओं का निर्देश किया गया है-व्याख्याकार ने चारों हेतुओं की सतर्क उपपत्ति बतायी है। नाश हेतु का अयोग, अर्थक्रिया सामर्थ्य, परिणाम और क्षयेक्षण [क्षय का दर्शन] इन चार हेतुओं से अभिप्रेत क्षणिकत्व की सिद्धि का निराकरण छ? स्तबक में, और विज्ञानवाद का प्रतिक्षेप पांचवे स्तबक में क्रमशः दीखाया जाने वाला है । चौथे स्तबक में केवल मणिकत्व सिद्धि में आने वाली महान् बाबायें ही उपस्थित की गयी है ।
शुन्यबा