________________
विषय
विषय असद् ज्ञान में भी प्रवर्तक ज्ञानाभेदग्रह 'द्विविज्ञेयाः' वचन को अनुपपत्ति २२२
मान्य २०८ द्विविज्ञेयता की उपपत्ति के लिये बौद्ध रजतदर्शन से रजातार्थी की प्रवृत्ति
प्रयास २२३ ___ का निराकरण २०६ द्विधिज्ञेयता की उपपत्ति का प्रयास ध्यर्थ २२४ दर्शन और प्रवृत्ति में हेतु-हेतुमद्भाव की
सामान्य विषयक ज्ञान का बौद्धमत में उपपत्ति का नया तर्क २०६
असंभव २२५ विकल्प की अलीकाकारता का असंभव २१० 'घटपटयोः रूपं इस प्रयोग की नैयायिक मिट्टी और घट के अभेद की उपपत्ति २११
मत में मी अनुपपत्ति २२५ मिट्टी में घटान्वय होने की युक्ति २१३ घटपट उभयवृत्ति साधारणरूप का अभाव २२६ कारणान्वय विना कार्य में लक्षण्य की
व्यवहारनय से उक्त प्रयोग अनुचित्त २२६
अनुपपत्ति २१५ व्यवहार में पविधः प्रदेश. प्रयोग क्षणिकयाद में बौद्धशास्त्रवचन का विरोध २१७
मान्य २२७ अतीतकाल में युद्धकृत पुरुषहत्या २१७
तात्पर्यभेद से योग्याऽयोग्यता का उपपादन २२७ 'मे' शब्द से कर्ता-भोक्ता का अभेदसूचन २१८ 'द्वयोगुरुत्वं न बन्धः' इसके प्रामाण्य की संतान की अपेक्षा से 'मे' निर्देश का
अनुपपत्ति २२८ असंभव २२० आधेयता विधि-निषेध का विषय नहीं है २२६ 'शक्त्या मे' इसकी 'मेरे हेतुक्षण की शक्ति वस्तु सामान्य विशेष उभयात्मक से इस अर्थ में विवक्षा अप्रमाण २२०
मानना चाहिये २३१ संसारास्थानिवत्ति के लिये क्षणिकत्व
सौत्रान्तिका मत का अन्तिम उपसंहार २३२ देशना २२१ शुद्धिदर्शिका ....
२३४ 'कल्पस्थायिनो पृथिवी' बुद्ध वचन २२१ ।
..