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________________ [ शापा समुब्धय स्त. ३-खोक १८ तथा, उपादानग्रहणादपि सत् कार्य , अन्यथा 'शालिफलार्थिनः शालिनीजस्यत्रोपादानम् , न कोद्रषवीजादेरिति प्रतिनियमानुपपत्तेः, फलाऽयोगस्योमयत्राऽविशेषात् । 'उपादानेन ग्रहणं संबन्धस्ततोऽसतः संबन्धाभाषात' । इत्यन्ये । तथा, सर्वसंमवाऽभावात सन कार्यम् , असतः कारणेऽसंबद्धाऽविशेष सर्प सर्वस्माद भनेर+, दयानामा मामीनार संवद्धम् | यथा: "असन्चानु नास्ति संबन्धः कारणः सवसतिमिः । अर्मपद्धेषु चोत्पत्तिमिछतो न व्यवस्थितिः ।।१॥" इनि | [ ] भाव रहा उसरकाल में उस का भाष मानमे में कोई असङ्गति नहीं है। एक काल में ही किसी वस्तु का भावाभाव विराद्ध हो सकता है, भिन्नकाल में नहीं । हासोंग का हटास असत की अनुत्पत्ति बताने में इक्ति नहीं हो सकता । पोंकि शासौंग का प्रागभान होकर साविक अमान होता है, प्रागमा, उसी का होता है-माव में कमी मिस का भाव सम्भव हो।'-तो यह कथन मो ठीक नहीं। क्योंकि असरण को विद्यमान प्रागभाव प्रतियोगिस्वरूप मानने में गौरव अतः अविमानस्य अर्थात सपूर्णकाल में ममाव को हो असस्वरूप मानना साघव के कारण उचित है. उसी से सांत्र अबतक अनुगत व्यवहार की उपपति हो सकता है । अतः शसींग में सादिक अभाव से झसत्य व्यबहार का और कायों में प्रागभावप्रतियोगस्वरूप नसत्व से असत्स्व व्यवहार का उपपावन करना बषित नहीं है पोंकि ऐमा मानने पर व्यवहार की अनुगतरूपता का भङ्ग हो जाता है। कार्यविशेष के लिये कारणविदोष हो हो नियमित रूप से प्राण किया जाता है. इसलिये भी उत्पत्ति के पूर्व कार्य का अस्तित्व मानना आवश्यक है । यदि कार्य उत्पत्ति के पूर्व असत होगा तो कार्य के लिये सारे पदार्थ सपातहोंगे, और इस का फल यह होगा कि वालि उसपकोटि का धान्य जिस से उत्कृष्ट कोटि का चावल प्राप्त होता है-उसके लाभ के सिमे किसाम शालिगोजकाही नियम से उपासन न कर सकेगा। कोद्रव यानी निकृष्ट धाम के सीजको प्रहण करने में भी उस को प्रति को प्रसक्ति हो सकती है । क्योंकि उत्पत्ति के पूर्व वाक्ति का असत्व जालिमोज और कोरब के बोल होमों में समान है । तो फिर क्या कारण है कि किसान शालिके लाभ के लिये शालि भोज काही उपाशन करे और कोच के बीज कर उपादान न करे । उत्पत्ति के पूर्व कारण में कार्य का अस्तित्व मानने पर इस प्रश्न का समाधान सुकर होता है। बहस प्रकार कि शासि शालिपीज में प्रथमत: रहता है और कोय के सीज में नहीं रहता है इसलिये किसान ममता है कि शालिखोज से हो मालिका लाभ हो सकता है कोतव के बीज से नहीं | अत: वह शालि लाभ के लिये शालि बोज को हो प्रहण करता है कि कोयमोजको।। [उपावान और कार्य के सम्बन्ध को अनुपपत्ति माय विद्वान कारिका में आये 'उपावानपहलवान का अर्ष अपाबान के साथ कार्यसम्बन्ध बताकर उससे यह शिर्ष निकालते हैं कि यदि कार्य को उत्पति के पूर्व प्रसव माना जायगा तो कारण के साथ उसका सम्बन्ध हो सकेगा | क्योंकि सम्बन्ध सत्पबाथों में ही होता है । असत् बौर सदका सम्बन्ध नहीं होता । कार्य को उत्पत्ति के पहले सतु माममा इसलिये भी आवश्यक है
SR No.090418
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 2 3
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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