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शास्त्रदातासमुप-सतमा हो. १९ अत्र विशेष्याऽसिद्धिमाक्षिप्य परिहरतिमूकम्--सक्रियायोगसः सा चेत्तद पुष्टौ न युज्यते ।
नवन्ययोगाऽभाषे च पुष्टिरस्य कथं भवेत् । ॥९८॥ तस्यात्मनः क्रिया = छपात्रदानादिका तस्या योगतः = सम्बन्धाद, सा शक्तिः तषा चास्मातिरिक्ता साधारण कारण जन्यत्वमेव इति चेत् ? तस्यात्मनोऽपुष्टी = अनुपचये सति न युज्यते, 'क्रियाजन्या शुकिः' इति शेषः । 'यथा मृदः पुधावेश घटादिनिका शक्तिर्भवति, तथाऽऽस्मनोऽपि पुष्पादेव सवाटिजनिका पाक्तिः स्यात्, न त्वन्यति दिकाल से प्रबदमाम है, इन अनादिमषाव की घटक भिन्नमिन्न यातनाये ही कर्म आणि नये कारणों के उपस्थित होने पर भिन्न भिन्न कार्यों को जन्म देती है, भलः 'वासना' से भिन्न फिसी प्रकार के क्रममन्य शतष्ट की कल्पना निष्प्रयोजन है ॥९॥
शक्ति का माकस्मिक अस्तित्व भासद्ध है] इस कारिका [७] में जैम अजों के प्रयाद के आधार पर बहए कना की शक्ति है' इस पूर्वोच पक्ष का ग्नान किया गया है । कारिका का अर्थ यस प्रकार है___अट को कर्ना की शक्ति मामने पाले विद्वानों से अन्य जैमागर्मानष्णात विभागों का इस लर्भ में यह कहमा है कि सभी का आमरूर मे सपान है, अतः मामा से भिन्न किसी अन्य हेतु के महयोग के बिना उन में शक का आकस्मिक मस्तित्व
से लिव हो सकता है। अर्थात् किसी नूनन कारण को न मानने पर कर्ता में शक्ति का स्वस्थित बस्तिष कथर्माप सिम नतों हो गकता । आशय यह है कि पक मनुष्य जर कोई कर्म करता है उसका फल उसी को प्राप्त होता है, अन्य को नहीं भता यह मानना होगा कि उस फल की उम्पादिका शक्ति उसी मनुल्य में रहमी है, किन्तु पार शसि उस मनुष्य में केवल यदि इस लिये मानी जायगो कि यह मनुष्य पक भास्मा
मता उक्त शक्ति प्रारमधमे होने से स म विद्यमान है ना वाारमानो उस मनुष्य के समान ही अन्य मनुष्य भी है. अतः या शक्ति केपल कर्मकर्मा मनुष्य में भीम रहकर गन्य मनुरूप में भी रहेगी: फलतः एक मनुष्य के कर्म का फल उस निकेबल पर दुसरे. मनुष्यों का भी प्राप्त होने लगेगा, अतः स शनि को मारमामा के अधीन नहीं माना जा सकता, तो फिर उन शकि. जव शारममात्र से जन्म होगी और मात्मा से भिन्न किती अमाधारण बाण में भी जभ्य न होगी तो कारण के सर्षया भभाय में उक्त शक्ति या कर्मका में भी नो मरेगा । प्राप्ति (क) का स्वरूप इस प्रकार सातव्य है
__ "कतंगत शक्ति यदि भाममात्र से जन्य न होती प्रामममिग्न किमी असाधारण कारण से भी अन्य न होगी नी जाय ही नहीं हो सकती, क्योंकि यह सामान्य नियम है कि जो पदार्थ किसी पक कारण से जन्य न होने हुए अन्य भासाधारण कारण से भो ब्राय नहीं होना वह अमन्य हो होता है जैसे यायमन में भामाश आदि मौर अन्यमतों में शशशु मादि ॥२७॥