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________________ (१९)समराइचकम-प्राकृत साहित्य में इस प्रन्थ का महत्वपूर्ण स्थान है। इस में मग्निशर्मा तथा गुणसेन के ९ भवों का वैराग्यरसपूर्ण निरूपण है गुणसेन ने नववे भव में समरादिस्य हो उपशम की चरम सीमा पर पहुंच कर केवलज्ञान प्राप्त किया। मुमुक्षचनो के लिये यह अन्य कषाय की आग शान्त करने के लिए अमृतौषधितुल्य है। (२.)सम्बोधप्रकरण-इस प्रकरण में १२ अधिकार में देव का तात्त्विकस्वरूप, वारिखक श्रद्धा इत्यादि विषयों का निरूपण किया गया है। ज्ञापमानातान इस ना में २६ गाथा में ज्ञान के पांच प्रकारो का व्याख्यान किया गया है। (२२)बोटिकप्रतिषेध- इस प्रन्थ में दिगम्बर मत की मालोचना की गई है। (२३)सम्यक्त्वसप्ततिका-इस ग्रन्थ में सम्यक्त्व के ६७ प्रकार के व्यवहार का सूक्ष्मता से निरूपण किया गया है। (२४) संसारदावानल स्तुति-महावीरस्वामी इत्यादि की स्तुतिरूप है। अनुपलब्ध-संकेतप्राप्त ग्रन्थसमूह ११) अनेकान्तप्रघट्ट (११) क्षेत्रसमासवृत्ति (२१) पञ्चनियंठी (२) अनेकान्तसिद्धि (१२) चैत्यवन्दनभाष्य (२२) पश्चलिङ्गी (३) महच्छीचूडामणि (१३)जम्बूद्विपप्रज्ञप्ति टीका (२३) पञ्चस्थानक (४) आत्मसिद्धि (१४)जम्बूद्विपसंग्रहणि (२8) परलोकसिद्धि (५) आवश्यकसूत्र बुहटीका (१५)त्रिभङ्गोसार (२५) बृहन्मिथ्यात्वमचन (६) उपदेश प्रकरण (१६)दिनशुद्धि (२६) भावनासिद्धि (७) उपदेशमाला टीका (१७)द्विजवदनचपेटा (२७) संग्रहणीवृत्ति (८) ओघनियुक्तिवृत्ति (१८) धर्मलाभसिद्धि (२८) सम्बोधसित्तरी (९) कथाकोश (१९) धर्मसार (२९) संस्कृतात्मानुशासन (१०) कुलकानि (२०) न्यायावतारवृति
SR No.090417
Book TitleShastravartta Samucchaya Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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