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शासन-चतुस्थिशिका eeeeeeeeeeee990 उन्होंने शलको प्रतिमारूपमें परिवर्तित पाया, परन्तु प्रतिमाके पैर शहरूप ही रह गये, अर्थात यह दश दिनकी निशानी रह गई। शङ्खमेसे नेमिनाथ प्रभु प्रकट हुए और इस प्रकार वे 'शहपरमेश्वर' कहलाये ।' निर्वाणकाराख और अपभ्र शनिर्वाणभक्ति के रचयिताओंने भी होलागिरिक शङ्खदेवका उल्लेख करके उनकी वन्दना की है । यथा
(क) ... वंदमि होलागिरी संखदेव पि ।—नि० का० २४ ।
(ख) 'होलागिरि संखुजिणेंदु देउ,
विझणाणरिदु ण वि लद्ध छेउ ।'-१०नि० भ० ।
यद्यपि अय-शनिर्वाणभक्तिकारने विमण (विन्ध्य १) नरेन्द्रले द्वारा उनकी महिमाका पार न पा सकनेका भी उल्लेख किया है पर उससे विशेष परिचय नहीं मिलता। ऊपर के परिचयोंमें भी प्रायः कुछ विभिलता है फिर भी इन सब उल्लेखों और परिचयों इतना स्पष्ट है कि शङ्ख जिमतीर्थ रहा है और जो काफी प्रसिद्ध रहा है तथा जिनप्रभमूरिके उल्लेखानुसार वह यक्न राजाओं द्वारा प्रशंसित और परिणत भी रहा है। श्रीमानुकीर्तिने शहदेवाएक', श्रीजयन्तविजयने शंखेश्वर महातीर्थ और श्रीमणिलाल लालचन्दने शंखेश्वरपार्श्वनाथ' जैसी स्वतन्त्र रचनाएँ भी शाजिनपर लिखी हैं ।
१ माणिकचन्द्र ग्रन्थमालामें प्रकाशित सिद्धान्तसारादिसंग्राम सङ्कलित । २ विजयधर्मसूरि-ग्रन्थमाला, उज्जैनसे प्रकाशित । ३. सस्तीवाचनमाला अहमदाबादसे मुद्रित |