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शासन चतुखिं शिका
हुलगिरि - शङ्खजिन
श्रीपुरके पार्श्वनाथ की तरह हुलगिरिके शङ्खजिनका भी अतिशय जैनसाहित्य प्रदर्शित किया गया है।
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इस तीर्थ सम्बन्धमें जो परिचय - पन्थ उपलब्ध हैं उनमें मदनकीर्तिकी प्रस्तुत शासनचतुस्त्रिंशिका सबसे प्राचीन और प्रथम रचना है । इसमें लिखा है कि- "प्राचीन समयमें एक धर्मात्मा व्यापारी ire in rear कहीं जा रहा था। रास्ते में उसे हुलगिरिपर रात हो गई । वह वहीं बस गया। सुबह उठकर जब चलने लगा तो उसकी वह शो गोन अचल हो गई- चल नहीं सकी। जब उसमेंसे शङ्खजिन (पार्श्वनाथ का आविर्भाव हुआ तो वह चल सकी। इस अतिशयके कारण हुलगिरि शङ्खजिनेन्द्रका तीर्थ माना जाने लगा । अर्थात् तबसे शङ्खजिन तीर्थ प्रसिद्धिको प्राप्त हुआ।" मदनकीर्तिसे एक शताब्दी बाद होनेवाले जिन प्रसूरि अपने 'विविधतीर्थकल्प' गत 'शङ्खपुर-पार्श्वनाथ' नामक कल्प शङ्खजिनका परिचय देते हुए लिखते हैं कि "प्राचीन समयकी बात है कि नवमे प्रतिनारायण जरासन्ध अपनी सेनाको लेकर राजगृहसे नवमे नारायण कृष्ण से युद्ध करनेके लिये पश्चिम दिशा की ओर गये । कृष्ण भी अपनी सेना लेकर द्वारकासे निकलकर उसके सम्मुख अपने देश की सीमापर जा पहुँचे । वहाँ भगवान अरिष्टनेमिने शक बजाया और शंखेश्वर नामका नगर बसाया । शङ्खकी आवाजको सुनकर जरासन्ध क्षोभित हो गया और जरा नामकी कुलदेवता की आराधना करके उसे कृष्णकी सेनामें भेज दिया । जराने कृष्णकी सारी सेनाको श्वास रोगले पीडित कर दिया | जब कृष्णुने अपनी सेना का यह हाल देखा तो चिन्तातुर