________________
३८] प्रकीर्णक-पुस्तकमाला Geeeeeeeeeeeeeeeee
इन पाँचोंमें "विपुलगिरि'का तो और भी ज्यादा महत्व है। क्योंकि उसपर अन्तिम तीर्थकर वर्धमान-महावीरका अनेकवार सम. वशरण भी पाया है और वहाँसे उन्होंने मुमुक्ष ओंको मोक्षमार्गका उपदेश किया है । मदनकीर्तिने यहाँ के प्रभावपूर्ण जिनयिम्बका उल्लेख किया है। जान पड़ता है उसका अतिशय लोकविश्रत था। सम्भव है जो विषुलगिरिपर प्राचीन जिनमन्दिर बना हुआ है और जो आज खण्डहरके रूपमें वहाँ मौजूद है उसी में उल्लिखित जिनविम्ब रहा होगा। अब यह सहा तासा के प्रति ' इसकी सुबई होनेपर जैनपुरातत्वकी पर्याप्त सामग्री मिलनेकी सम्भावना है।
८. विन्ध्यगिरि
आचार्य पूज्यपादने 'विन्ध्यगिरि'को सिद्धक्षेत्र कहा है और वहाँसे अमेक साधुओंके मोक्ष प्राश करनेका समुल्लेख किया है' । यह विन्ध्यगिरि विन्ध्याचल जान पड़ता है जो मध्यप्रान्तमें रेवा (नर्मदा)के किनारे-किनारे बहुत दूर तक पाया जाता है और जिसकी कुछ छोटी छोटी पहाड़ियाँ पास-पास अवस्थित हैं । मदनकीर्तिने इसी विन्ध्यगिरि अथवा विन्ध्याचलके जिनमन्दिरोंका, निर्देश किया प्रतीत होता है। झाँसीके पास जो एक देवगड़ नामक स्थान है जो एक सुन्दर पहाड़ीपर स्थित है वहाँ विक्रमकी १०वीं शताब्दीके आस-पास बहुत मन्दिर बने हैं जो शिल्पकला तथा प्राचीन कारीगरीकी दृष्टिसे उल्लेखनीय हैं। भारत सरकारके पुरातत्वविभागको यहाँ से २०० के लगभग शिलालेख
१ विन्ये च पौदनपुरे वृषद्वीपके च'-नि० भ० । २ देखो, कल्याणकुमार शशिकृत 'देवगड़' नामक पुस्तककी प्रस्तावना |