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शामन-चतुस्चिशिका
[११ eeeeeeee00000000000 प्रकारकी पूजा सामग्री चदाई जाती है और यथायोग्य शैलिसे उनकी पूजा सम्पन्न की जाती है वह सम्मेदगिरिकी अमृतवापिका दिगम्बर शासनको सदा रक्षा को-लोकमें उसे हमेशा स्थिर रक्खें ।
समोदगिरिकी अमृतवापिका (जलमन्दिरके जलकुण्ड) की यह महिमा है कि उसमें भव्यजन, सम्मेदगिरिसे निर्वाण प्राप्त बीस तीर्थङ्करोंके नामोंका उच्चारण करके उनके लिये अष्टद्रव्य चढ़ाते हैं और अपनी सातिशय भक्ति प्रकट करते हैं ॥१४॥ स्मात्ती' पाणिपुटोदनादनमिति ज्ञानाय मित्र-द्विषोरात्मन्यत्र च साम्यमाहुरसकृन्नन्थ्यमेकाकितां । प्राणि-ज्ञान्तिमद्वेषतामुपशमं वेदान्तिकाश्चापरेर तद्विद्धि प्रथमं पुराण-कलित दिग्याससां शासनम ॥१५।।
स्मृतिपाठक, ज्ञानप्रातिके लिये हाधोंमें रखकर भोजन करना, मित्र और शत्रु तथा अपने और परमें समता (एक-सा) भाव रखना, निर्गन्थ (निर्वसन) रहना और एकाकी (अकेले ) रहना इन बातोंका कथन करते हैं । तथा वेदान्ती, प्रारिणयोंपर शान्ति (दया भाव) रखना, किसीसे द्वष नहीं करना और उपशममात्र (मन्दकपाय) रखना बतलाते हैं सो यह सब पुराण-प्रतिपादित दिगम्बरोंका शासन है अर्थात उक्त सब बातें दिगम्बर शासनमें सर्व प्रथम और मुख्यतया प्रतिपादित हैं।
यहाँ रचयिताका आशय है कि स्मृतिपाठकों और वेदान्तियों. ने भी दिगम्बर शासनको अपनाया है और इससे उसका महत्व प्रकद है ॥१५शा
१ स्मृतिपाठकाः । २ श्राहु इति क्रिया अत्रापि योज्या ।