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________________ ( शान्तिसुधा सिन्धु ) F J तीनों ही परपदार्थों में संघटित होती हैं । परंतु परपदार्थों में कर्ता, कर्म क्रिया होनेसे आत्माकी सिद्धी नहीं होती । यही समझकर उत्तम मुनिराज अपने पदार्थ में ही कर्ता, कर्म और क्रियाओंका होना मानते हैं । भावार्थ - में घट बनाता हूं ' इस वाक्यमें में कर्ता है, घट कर्म है, और बनाना किया है। बनाना क्रियाका आधार घट है। यहांपर मैं शब्द से रागादि विशिष्ट अशुद्ध आत्मा लिया जाता है, अथवा शरीर विशिष्ट आत्मा लिया जाता है । में घट बनाता हूं इसमें शरीर विशिष्ट आत्मा ही बनानेरूप क्रिया को करता है। इस प्रकार पुद्गलरूप घटको बनानेवाला कर्ता शरीर विशिष्ट आत्मा कहलाता है । यह सब व्यवहारनय है । व्यवहारसे ही ऐसा कहा जाता है । यदि वास्तव में देखा जाय तो यहां पर भी पुद्गलरूप घटका कर्त्ता आत्मविशिष्ट शरीर पौद्गलिक है इस बात को सब कोई जानता है । इसप्रकार घटरूप पुद्गलका कर्ता शरीररूप पुद्गल ही पड़ता है और इस वार्ता कर्म क्रिया तीनों ही पुद्गलमें सिद्ध हो जाती है। इस प्रकार यथार्थ रीतिसे कर्ता, कर्म, क्रिया, तीनों एक अपने ही द्रव्यमें सिद्ध होते हैं, यदि आत्मद्रव्यको कर्त्ता मान लिया जाय तो आत्मा अपने ही भावोंका कर्ता होता हैं वह परभावों का कर्त्ता कभी नहीं हो सकता । यदि वह आत्मा शुद्ध है तो अपने शुद्ध भावोंका कर्ता होता है और जो आत्मा अशुद्ध होता है वह अपने रागादिक अशुद्ध भावोंका कर्ता होता है । आत्मा चाहे शुद्ध हो और चाहे अशुद्ध हो, वह घटपटादिकका कर्ता तो कभी नहीं हो सकता । घटपटादिकका कर्ता तो शरीर ही हो सकता है । घटपटादिकका इस प्रकार से भी कर्ता, कर्म, क्रिया, तीनों ही अपने द्रव्यमें ही सिद्ध होते हैं । पर द्रव्यमें कभी नहीं हो सकते । ९६ इस प्रकार कर्ता, कर्म, क्रियाकी सिद्धी अपने निज द्रव्यमें सिद्ध होनेपर भी उससे आत्माकी सिद्धि नहीं हो सकती । जिस समय यह शुद्ध आत्मा, अपने ही शुद्ध आत्मा में, अपने ही शुद्ध आत्माके द्वारा अपने ही शुद्ध भावोंको उत्पन्न करता है, उस समय वह शुद्ध आत्मा कर्ता कहलाता है, शुद्ध भावकर्म कहलाते हैं, और शुद्ध भावोंका प्रगट होना क्रिया कहलाती है । यद्यपि इस प्रकार शुद्ध भावोंके उत्पन्न होने में कर्ता कर्म क्रियाकी कल्पना की जाती है, परन्तु "
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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