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________________ ( शान्तिसुधासिन्धु) समान जडरूप वा अत्यंत मूर्ख हो गये हैं। जिस प्रकार लक्कड, दीवाल आदि आदि कभी नम्रीभूत नहीं होते, उसी प्रकार जड वा मूर्ख मनुष्य भी सर्वोत्कृष्ट देव, शास्त्र, गुरुको देखकर भी कभी नम्रीभूत नहीं होते । यह कर्मोका तीव्र उदय उनको जडके समान बना देता है। परंतु जिन जीदों : उम्र मंत्र होता है. और इसीलिए जिनमें नम्रता गुण विद्यमान रहता है, वे जीव देव, शास्त्र गरुको देखकर तुरंत ही उनको नमस्कार करते हैं. भक्तिपूर्वक उनकी पूजा करते हैं, और इस प्रकार भक्ति, पूजा कर अपना जन्म सफल मानते हैं । वास्तवमें देखा जाय तो अनादिकालसे पड़े हुए इस संसारमं इस जीवको यथार्थ देव शास्त्र गुरुकी प्राप्ति होना वा उनके दर्शन होना अत्यंत कठिन है, अत्यंत दुर्लभ है । जिन जीवोंको देव, शास्त्र, गुरुकी प्राप्ति होती है । ऐसे देव, शास्त्र, गरुको पाकर भी जो उनको नमस्कार नहीं करते वे जीव इस संसारमें अत्यंत मुर्ख वा अज्ञानी समझे जाते हैं। प्रश्न- संक्षेपाद बंधमोक्षस्य स्वरूपं वद मे प्रभो ? अर्थ- हे प्रभो ! कृपाकर यह बतलाइए कि बंध और मोक्षका क्या स्वरूप है। उत्तर - सर्ववस्तु सा मेऽस्तीत्येकाक्षरेण जन्तवः । बद्धा भवंति मूढाश्च स्वात्मसौख्यपरामुखाः ॥१३॥ सर्ववस्तु न मेस्तहि इधक्षरेणेति शीघ्रतः । मुच्यते कर्म गा भन्याः भवंति मोक्षभागिनः ॥ १३१ ।। ज्ञात्वेति मोक्षसिद्धय मेऽक्षरं त्यक्ता भवप्रवम् । न मेऽक्षरवयं सारं ग्राह्यं शांतिभवे यतः ॥ १३२॥ अर्थ -- इस संसारमें जो जीव अपने आत्मसुखसे पराङमुख होते हैं और इसीलिए जो मूर्ख कहलाते हैं बे जीव ' इस संसारमें जितने पदार्थ हैं वे सब मेरे हैं ' इस प्रकारके ' मे' इस एक अक्षरसे ही कर्म बंधनोंसे बंधे जाते हैं तथा जो भव्य जीव मोक्ष प्राप्त करना चाहते हैं वे ' इस संसारमें कोई भी पदार्थ 'मेरा नहीं हैं' इस प्रकारके 'न में" इन दो अक्षरोंसे शीन ही कर्मोसे छूट जाते हैं। यही समझकर
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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