SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( शान्तिसुधा सिन्धु ) अर्थ - धर्मात्मा श्रावकोंको शीत ऋतु और ग्रीष्म ऋतु इन आठ महीनों में तो मुख्य रीति से धन कामाना चाहिए | तथा गौण रीति से व्रतउपवास, योग, ध्यान आदि धार्मिक कार्य करने चाहिए । परंतु चातुर्मासमें धन कमानेका काम गौण रीति से करना चाहिए। तथा जहां पर अपने आत्मजन्य आनंदका स्वाद लेनेवाले और अपने आत्मा शुद्ध स्वरूपको अनुभव करनेवाले साधु महात्मा हों वहां जाकर उनकी पूजा करनी चाहिए दान देना चाहिए और उनमे आत्माका स्वरूप वा तत्त्वोंका स्वरूप पूछना चाहिए तथा अपनी शक्तिके अनुसार तप और ध्यान करना चाहिए। जिससे कि यह अपना आत्मा अत्यंत निर्मल हो जाय । जो अज्ञानी जीव इस कही हुई रोटर केवल धन ही कमाने में लगे रहते हैं, वे मनुष्य पापी हैं, और पशुओंसे भी निकृष्ट पशु हैं । ७७ भावार्थ - मगसिर (अगहन) पौष, माघ, फाल्गुन ये चार महीने शीत ऋतु कहलाते हैं। चैत्र, वैसाख, ज्येष्ठ, आषाढ ये चार महीने ग्रीष्म ऋतु वा गर्मी कहलाते हैं। श्रावण, भादों, आश्विन, कार्तिक ये चार महीने वर्षा ऋतुके कहलाते हैं । वर्षा ऋतु पानी बरसने के कारण अनेक प्रकारके स्थावर और अनेक प्रकारके त्रस जीव उत्पन्न होते रहते हैं । यद्यपि कभी-कभी आषाढमें भी पानी बरस जाता है । परंतु जीव की उत्पत्ति प्रायः श्रावणसे ही होती है । इसीलिए श्रवणसे लेकर कार्तिक तक वर्षायोग धारण करनेके दिन कहे जाते है, अर्थात् इन दिनों मुनिराज वा क्षुल्लक, ऐलक किसी एक ही स्थान में रहते हैं । चातुर्माससे पहले ही वे अपने धर्म - ध्यानकी सुलभता देख लेते हैं, और फिर वर्षायोग धारण करते हैं । एक स्थानपर वर्षायोग धारण करनेसे वहां के श्रावकोंको तथा समीपवर्ती अन्य देशके श्रावकोंको धर्मोपदेश सुननेका, वैयावृत्य करनेका तथा आहार दान देने वा आत्मकल्याण करने की बहुत सुविधा रहती है। इन दिनों प्रायः व्यापार भी कम हो जाता है । तथा सर्वोत्तम दशलाक्षणिक पर्व भी इन्हीं चातुर्मास के मध्य भाग में आ पडता है, इसलिए श्रावकों का यह कर्तव्य हो जाता है कि वे इन दिनों आठ महीने की हुई कमाईको सार्थक करे। इन दिनों प्रायः श्रावकोंको मुनिराजकी सेवामें ही अपना समय व्यतीत करना चाहिए। सुनिराज के ia
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy