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( शान्तिसुधासिन्धु )
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पक्षको पालन करने के लिये जो अपनेको शक्तिहीन बतलाता है । और जो स्वर्ग-मोक्षके मार्गको रोकने में सदा सावधान रहता है । इस प्रकार जिसमें ऊपर लिखे सब दोष विद्यमान हैं । और जो धर्म-कर्म से सर्वथा रहित है, ऐसा दुष्ट पुरुष अपने आत्माके स्वरूपसे सदा विमुख रहनेवाला अथवा शरीरादिक वा पुद्गलादिक पर पदार्थोमें मग्न रहनेवाला परमुखी कहलाता है । ऐसा पुरुष अवश्य ही नरकगामी होता है ।
भावार्थ- जो जीव अपने आत्मासे विमुख रहता है, शरीरादिक पर पदार्थोके पालन पोषणमें ही लगा रहता है, वह पुरुष पांचों इंद्रियोंके विषयों में ही लगा रहता है। उसके हृदयमें सदाकाल इन्द्रियोंको तृप्त रखनेकी लोलुपता ही बनी रहती है, उसके हृदयमें कामदेवकी अग्नि सदा जलती रहती है, वह धार्मिक क्रियाओंसे भी सदापराङ्गमुख रहता है । और मोक्षके मार्गसे भी सदा पराङगमुख रहता है, ऐसा जीव मकान, वस्त्राभूषण आदि पर पदार्थों में ही निमग्न रहता है, और सदाकाल धनादिककालोलुपी बना रहता है। ऐसा जीव अपने सदाचारके सुखसे दूर रहता है, सब प्रकारके पापोंको करता रहता है, सदाकाल कुमार्गके पक्षकी ही पुष्टी किया करता है । यथार्थ और सत्य बातके लिये वह शक्तिहीन बन जाता है, तथा स्वर्ग-मोक्षके कारणोंमें वा धर्मकार्यों में सदा विघ्न किया करता है । इस प्रकार आत्मासे विमुख रहनेवालेके चिन्ह बतलाये हैं । ऐसे पुरुष नरकगामी ही होते हैं ।
प्रश्न स्वात्मसन्मुखजन्तोः किं चिन्हं स्यान्मे प्रभो बद?
अर्थ- हे भगवन् ! अब कृपाकर यह बतलाइये कि जो जीव आत्माके स्वरूपके सन्मुख रहता है उसके क्या-क्या चिन्ह हैं ? उत्तर - चिदानन्दपदे शुद्ध संसारक्लेशजिते ।
निराबाधे निराकारे निर्विकारे निरामये ॥ ११५ ॥ पूर्वोक्तगुणयुक्ते यो लोनः स्वात्मनि शाश्वते ।
स एव मोक्षगामीति सुख्येव सौल्यवायकः ॥ ११६ ।।
अर्थ- यह अपना शुद्ध आत्मा यथार्थ दृष्टि से देखा जाय तो अत्यंत शुद्ध है । चिदानन्द पदपर विराजमान है, संसारके समस्त क्लेशोंसे