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________________ ( शान्तिसुधासिन्धु ) कल्याण करनेवाले परिणामोंको विशुद्ध करनेवाले, और मोक्ष देनेवाले शास्त्र भगवान जिनेन्द्रदेवके कहे हुए शास्त्र ही हैं । महा भारत रामायण स्मृति आदि जितने शास्त्र हैं, वा वेद उपनिषद आदि शास्त्र हैं, वे मोक्षमार्गके यथार्थ स्वरूपका निरूपण नहीं करते। वे शास्त्र सराग अवस्थाका ही प्रतिपादन करते हैं, अथवा वेदादिक शास्त्र मांस-भक्षणादिकका उपदेश देते हैं, इसलिये वे शास्त्र जीवोंका कल्याण कभी नहीं कर सकते । उनके पठन-पाठनसे मोक्षकी प्राप्ति कभी नहीं हो सकती । अतएव अपने आत्माका कल्याण करनेवाले भव्य-जीवोंको अन्य समस्त शास्त्रोंके पठन-पाठनका त्यागकर भगवान जिनेन्द्रदेवके कहे हुए जिनशास्त्रोंका ही पठन-पाठन करना चाहिये । इन्हीं के पठन-पाठनसे जीवोंका कल्याण हो सकता है तथा मोक्षकी प्राप्ति हो सकती है । प्रश्न- सग्रंथलिंगयक्तं च साधं त्यक्त्वा विचक्षणः । निग्रंथलिंगयुक्तं कि वंदते मे वद प्रभो ! अर्थ- हे प्रभो ! अब यह बतलानेको कृपा कीजिये कि चतुर पुरुष परिग्रह धारण करनेवाले साधुओंको छोड़कर सर्वथा परिग्रह रहित रहनेवाले साधुओंकी वन्दना क्यों करते हैं ? उत्तर - बाह्मादिसंगादिविवर्जकत्वाद, वस्त्रास्त्रसंस्कारसुदूरकत्वात् । सदा निरारम्भपदाश्रयत्वात्, स्वानन्दसाम्राज्यसुखे स्थिरत्वात् ।। ९१ ॥ निग्रंथसाधुः सुखदस्ततश्च, प्रपूज्यते नव सरागसाधुः । स्वर्मोक्षमार्गचिदर्शकत्वाद्, वस्त्रास्त्रसंगाविसमन्वितत्वात् ।। ९२ ।। अर्थ- इस संसारमें जो परिग्रह रहित साधु होते हैं वे अंत-रंग बहिरंग आदि सब प्रकारके परिग्रहसे रहित होते हैं, वस्त्र, अस्त्र, शस्त्र आदिके संस्कारोंसे बहुत दूर रहते हैं । सदाकाल आरंभरहित पदपर ही विराजमान रहते हैं और अपने आत्मजन्य आनंदके साम्राज्यसुखमें सदाकाल स्थिर रहते हैं। इसीलिए वे वीतराग परिग्रह रहित साधु सबके
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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