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________________ ( शान्तिसुधा सिन्धु ) अर्थ - जो पुरुष अपने गाढ मोहनीय कर्मके उदयसे तथा तीव्र विषयोंकी अभिलाषासे सातवें नरक में पहुंचता है वही पुरुष अपने ध्यानरूपी अग्निके द्वारा कर्मों के समूहको जलाकर क्या मोक्ष महल में नहीं पहुंच सकता ? अर्थात् अवश्य पहुंच सकता है । मोक्षकी इच्छा करनेवाला जो भव्य पुरुष सुख देनेवाले श्रेष्ठ पुण्यको भी जन्म मरणरूप संसारकी अग्निका कारण वा बीज समझता है और इसीलिये वह पुरुष उस पुण्यका भी त्याग कर देता है। वह महापुरुष क्या महा दुःख देनेवाले पापरूपी अंधकारका त्याग नहीं कर सकता ? अवश्य कर देता है । इस संसारमें भव्य पुरुषकी कृति बहुत ही गहरी वा अगाध है । भावार्थ - जिसमें जितनी शक्ति होती है वह उतना ही काम कर सकता है । यह जीव स्त्रीपर्यायसे सातवें नरकमें नहीं जा सकता, इसलिये वह स्त्रीपर्यायसे मोक्ष में भी नहीं जा सकता। जो पुरुष सातवे नरक में जा सकता है वह पुरुष मोक्ष भी जा सकता है। केवल साधन बदलने की आवश्यकता है । नरकको प्राप्ति अत्यंत तीव्र मोहसे और अत्यत तीव्र विषय भोगोंकी इच्छासे होती है। और मोक्षकी प्राप्ति ध्यान और तपश्चरण से होती है । जब ध्यानके द्वारा यह जीव समस्त कर्मोंका नाश कर लेता है और अत्यंत शुद्ध अवस्थाको धारण कर सिद्ध अवस्था में जा विराजमान होता है तब वही जीव मुक्त कहलाता है । जो पुरुष नरककी कारणभूत ऐसी विषयोंकी अभिलाषाका त्याग कर देता है वह पुरुष चक्रवर्तीके महासुखोंको भी हेय समझकर उनका त्याग कर देता है फिर भला उसके लिये महा दुःख देनेवाले पापोंकी तो बात ही क्या है उनका त्याग तो वह कर ही देता है। इसलिये आचार्य कहते हैं कि भव्य पुरुषोंके समस्त कार्य अगाध वा अत्यंत गंभीर होते हैं, उनका पार कोई नहीं पा सकता । इसलिये है आत्मन् ! तू भी विषयोंका त्याग कर और मोक्षकी इच्छा करता हुआ ध्यान तपश्चरणके द्वारा मोक्ष प्राप्त कर | प्रश्न भो गुरो हेतुना केन दुःखं प्राप्नोति मानवः ? अर्थ - हे भगवन् ! अब कृपा कर यह बतलाइये कि यह मनुष्य किन किन कारणोंसे दुःख भोगता है ? -
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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