________________ ( शान्तिसुधासिन्धु ) अर्थ- इस संसारमें भगवान् अरहतदेव सदा जयबंत रहे, उनकी वाणी सदा जगशील रहे. सब जीवोंका कल्याण करनेवाला यह जैनधर्म सदा जयशील रहे, श्रीकुंदकूद आदि समस्त पहलेके आचार्य सदा जयशील रहे, मेरे विद्यागुरु आचार्य सुधर्मसागर सदा जयशील रहे और मेरे दीक्षागुरु आचार्य श्रीशांतिसागर महाराज सदा जयशील रहे। ग्रंथं ह्यमुं शांतिकरं सदैव स्मरन्ति वांच्छन्ति पठन्ति यान्ति / त एव योग्यं भुवि सारसौख्यं लब्ध्वा लभन्ते ह्यजरामरत्वम् / अर्थ- जो भव्यजीव परम शांति उत्पन्न करनेवाले इस महाग्रंथको सदाकाल स्मरण करते हैं, सदाकाल इसका पठन-पाठन करते हैं,वा इसको प्राप्त होते हैं, अथवा इसके पठन-पाठनकी इच्छा करते हैं, वे पुरुष इस संसारमें इन्द्र चक्रवर्ती आदिके सारभूत सुखोंको प्राप्त होकर अजरामर पदको अर्थात् मोक्षपदको प्राप्त कर लेते हैं। सुखप्रदं वांछितदं च वस्तु धर्मानुकूलं च कुटुम्बवर्गम् / बोधि समाधि परिणामशुद्धि स्वराज्यलक्ष्मी विदधातु देवः / / अर्थ- ये भगवन् अरहतदेव सुखदेनेवाले इच्छानुसार पदार्थोको प्रदान करें, धर्मके अनुकूल कुटुम्बको प्रदान करे, सम्यग्ज्ञान प्रदान करें ममाधिमरण प्रदान करें, परिणामोंकी शुद्धता प्रदान करें, और मोक्षरूप स्वराज्यलक्ष्मी प्रदान करें। मोक्षं गते महावीरे स्वक्षिसुखदायके / चतुर्विंशतिसंख्याते चतुःषष्टयधिके शते // 1 // फाल्गुने शुक्लपक्षे हि तृतीयायां शुभे दिने / तारंगासिद्धभूमौ हि स्थित्वा स्वराज्यहेतवे // 2 // ग्रन्थच्छान्तिसुधासिन्धुरयं वांछितदः सदा / रचितः स्वात्मतुष्टेन कुन्थुसागरसूरिणा // 3 // अर्थ- श्रीमहावीर निर्वाण संवत 2464 के फास्गुन शुक्ल तीजके दिन श्रीतारंगा सिद्धक्षेत्रपर इस अभिष्ट फल देनेवाले श्रीशांतिसुधासिंधुकी रचना आचार्य श्रीकुंथुसागर महाराजने अपना सच्चा स्वराज्य पाने के लिए की / यह सदा जयवंत रहे / // समाप्तोऽयं ग्रंथः॥