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________________ ( शान्तिसुधासिन्धु ) करनेवाला है, कर्मों का नाश करने वाला है, स्वयंप्रभु है, तीनों लोकोंको विकसित वा प्रसन्न करनेवाला है, श्रेष्ठ धर्मका सार है, समस्त संसारी जीवोंका दीन बंध है, धर्मका उपदेश है, मोक्षमार्गका निरूपण करनेवाला है, सुख और शांतिका स्वामी है, अपने आत्माकी शुद्धतारूप स्वराज्यका फर्ता है, और अपने आत्मामें लीन रहनेवाला है। भावार्थ-केवलज्ञान प्राप्त कर लेने पर, जब यह आत्मा, अपनी दिव्यध्वनिके द्वारा धर्मोपदेश देता है तब, इसकी बह वाणी पूर्वापर अविरुद्ध, निर्दोष और समस्त तत्वोंका स्वरूप कहनेवाली होती है। इसीलिए यह आत्मा वाचस्पति कहलाता है । ये संसारी जीव जिसके द्वारा इस संसारसे पार हो जाय उसको तीर्थ कहते हैं। इस सर्वज्ञ वीतराग और पवित्र आत्मासे हजारों जीव संसारसे पार हो जाते है । कोई उसकी गति कर पान होता है तो देश पुमका पार होता है, कोई उसकी आज्ञानुसार चल कर पार होता है। इसलिए यह आत्मा तीर्थशिरोमणि कहलाता है । मोहनीय कर्मको सर्वथा नष्ट कर देने के कारण प्रमोह-हता कहलाता है, समस्त जीवोंका कल्याण करने के कारण करुणापति माना जाता है, दया-धर्म की प्रबल ध्वजा फहराने के कारण दयापताका अथवा दयाको ध्वजा फहरानेवाला कहलाता है, चिदानन्द स्वरूप होने के कारण परमप्रमोदी माना जाता है, मन आदि समस्त इंद्रियोंका निरोध करने के कारण मनोनिरोधी कहा जाता है, कामादिक समस्त विकारोंको नाश कर देनेके कारण मदनप्रणाशी या कामको नाश करनेवाला कहलाता है, यह आत्मा कर्मोको नष्ट कर स्वयं सिद्ध होता है, इसलिए स्वयं प्रभु कहा जाता है, लोक-अलोक सबको प्रकाशित करता है इसलिए तीनों लोकोंको प्रकाशित करनेवाला कहलाता है,समस्त कर्मोको नष्ट कर यह आत्मा अपने धर्म वा स्वभावमें लीन हो जाता है,इसलिए स्वधर्मसार माना जाता है, समस्त संसारी जीवोंको कल्याणकारी उपदेश देता है, इसलिए अखिल दीनबंधु कहा जाता है, श्रेष्ठ वक्ता होने के कारण शास्ता माना जाता है, मोक्षमार्गका निरूपण करनेके कारण प्रणेता कहा जाता है, अनन्तसुख और अनंतशांतिका भंडार होने के कारण सुख-शांतिभा माना जाता है अपने आत्मामे लीन होनेके कारण आत्मनिवासो कहा जाता है, और मोक्ष का
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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