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________________ ( शान्तिसुधासिन्धु ) अर्थ-जिसप्रकार न्याय और नीतिमे भ्रष्ट होनेवाले दुष्ट काष्ठांगारको, नीतिको जाननेवाले धर्मात्मा राजा जीवधरने ताडन किया था, उसीप्रकार जो राजा प्रजा पालन करने में लीन रहता है, उसकोभी जो दुष्ट, केवल राज्य छीन लेने के लिए मार देते हैं, उनको संसार में शांति प्राप्त करने के लिए दंडित किया जाता है। भावार्थ- जीवोंकी हिंसा करना पाप है. परंतु उस पाएमभी अपने परिणाम, और जीवोंकी शक्तिकी अपेक्षासे भेद हो जाता है। एक घासका पौधा उखाड़ने में जिनमा पाप लगता है, उससे कहीं अधिक पाप वडे वृक्षके काटने में लगता है, उससे भी अधिक पाप चींटी-चीटा जीनों घात करने में लगता है ! चममे भी अधिक पाप चींटी चींटा आदि तीन इंद्रिय जीवोंका घात करने में लगता है, उससे भी बहत अधिक पाप, मक्खी, भौंरा आदि चार इंद्रिय जीवोंके घात करने में लगता है । उससे भी अधिक पाप पंचेन्द्रिय असेनीका घात करने में लगता है, उससे भी अधिक पाप पंचेन्द्रिय पगका घात करने में लगता है, उससे भी अधिक पाप मनुष्योंको मारने में लगता है, और उससे भी अधिक पाप किसी राजा वा किसी धर्मात्माको मारने में लगता है। इसका कारण यह है कि, धर्मात्मा राजासे, वा अन्य धर्मात्माओंसे सैकड़ों हजारों जीवोंको लाभ पहुंचता है, अथवा सैकडों जीवोंका कल्याण होता है, उसको मार देने में उस लाभ, वा कल्याणका मार्ग बंद हो जाता है । इसीलिए राजद्रोही पुरुष, महादृष्ट और महापापी माना जाता है, तथा संसारमें अशांति उत्पन्न करनेवाला कहा जाता है । दुष्ट काष्ठांगारने अपनी दुष्टताक कारण सत्यंधरको मार कर राज्य छीन लिया था, जिससे उसकी रानीको दुःख हुआ था, जीबंधर कुमारको दुःख हुआ था, और सन्न प्रजा दुःखी होकर अशांत हो गई थी। अन्तमें जीवंधरने उसको ताडित कर, अपने हाथ में राज्य ले लिया था, और सब प्रजाको सुखी कर, शांत किया था। राजद्रोही पुरुष संसारभरमें अशांतिका कारण होता है, इसीलिए वह दंडित किया जाता है । ऐसे राजद्रोही पुरुषको दंडित करनेसेही प्रजा शांत होती है । अतएव प्रजामें शांति बनाए रखना, वा धर्मात्माओंमें शांति बनाए रखना, प्रत्येक भव्यजीवका कर्तव्य है। प्रश्न- किमर्थं दृश्यते जैनधर्मस्यैव महत्त्वता ?
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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