________________
( गान्तिसुधानि
भक्त्या मुनिश्रावकधर्मकर्ड चतुविधं दोयत एव दानम् । शान्त्यर्थमेवापि महादिशुद्धिः सुखप्रदं चाष्टविधार्चनादि।।४७४ पूर्वोक्तकार्य सकलं यथावत् सदैव कुर्वन्नपि चेन्न शान्तिः । अभव्यजन्तोरिव तस्य जन्तोः सर्व वृथा स्याद्धि वि/र्वधानम्
अर्थ- सबसे पहले शांति उत्पन्न करनेवाले और अत्यंत प्रिय ऐसे शुद्ध जलसे भगवान्का अभिषेक करना चाहिए, मुख देनेवाले और अत्यंत मिष्ट ऐसे इक्षरससे अभिषेक करना चाहिए, फिर सुवर्णके समान घी से अभिषेक करना चाहिए, अत्यंत सफेद और महापुष्ट करने वाले दूधसे अथवा क्षीरसागरके जलमे अभिषेक करना चाहिए. तदनंतर गाढे दहीसे अभिषेक करना चाहिए, फिर आत्माको सुख देनेवाले सर्वोपधिसे अभिषेक करना चाहिए । तदनंतर आम आदि महा फलोंके रससे अभिषेक करना चाहिए। इसीप्रकार मनि वा श्रावकके धर्मको धारण करनेवाले, मुनि वा श्रावकोंको भक्तिपूर्वक चारों प्रकारका दान देना चाहिए, पात्रदान देकर वा समदत्ति देकर, गृह-शुद्धि करनी चाहिए, और सुख प्राप्ति के लिए भगवान् जिनेंद्र देवका आठ द्रव्यसे पूजन करना चाहिए । ये सब काम आत्मामें परम शांति प्राप्त करनेके लिए किए जाते हैं । यदि इन समस्त कार्योंको विधि-पूर्वक करते हुएभी आस्मामें परम शांति प्राप्त न हो तो, फिर उस जीवका समस्त विधि-विधान अभव्य जीवके द्वारा किए हुए विधि-विधानके समान व्यर्थ समझना चाहिए,
भावार्थ- पंचामृताभिषेककी संक्षिप्त विधि इसप्रकार है । सबसे पहले दूध, दही, घी, इक्षुरस, सबौंषधिरस, फलरस, गंधोदक आदिके कलश तैयार करना चाहिए। इन पांचो कलशोंमें अक्षत, पुष्प, रत्न आदि डालने चाहिए. ऊपर पान और नारियल रखना चाहिए, चारों ओर सूत्रोष्ठीत करना चाहिए । फिर दस दिशाओंमें दस दिकपालोंको आव्हान करना चाहिए। तदनंतर 'श्रीकार' लिखकर उस पीठपर प्रतिमा विराजमान करनी चाहिए । अर्घ्य देना चाहिए। तदनंतर कलश पूजन कर, सुंदर श्लोक और मंत्र पढते हुए जलसे, इक्षुरससे, घी, दूध, दही, सवौषधिसे अभिषेक करना चाहिए। यहींपर फलोंके रसोंसे भी अभिषेक