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( शान्तिसुधा सिन्धु )
दृष्टि से यही आत्मा विष्णु कहलाता है । इसप्रकार यही आत्मा ब्रह्मा है, यही माहेश्वर है और यही विष्णु है, इसलिए यह आत्माही वन्दनीय और पूज्य है ।
भावार्थ - इस संसार में बहुत से लोग ब्रह्माको सृष्टिका कर्ता मानते हैं, महादेवको इस सृष्टिका नाश करनेवाला वा प्रलय करनेवाला मानते हैं, और विष्णुको उनकी रक्षा करनेवाला मानते हैं। परन्तु विचार करनेसे यह बात ठीक नहीं बैठती है। क्योंकि उनकी सम्प्रदाय के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु, और महादेव तीनोंही ईश्वर हैं। इसलिए ईश्वर ही जगत्कर्ता हो जाता है, ईश्वरही नाश करनेवाला हो जाता है, और ईश्वरही रक्षक बन जाता है । परंतु यह बात बन नहीं सकती है । क्योंकि जो जिसको उत्पन्न करता है वह उसका नाश नहीं कर सकता । दूसरी बात यह है कि ईश्वर निराकार है । जो निराकार होता है वह किसीभी क्रियाको नहीं कर सकता । क्रिया साकार पदार्थसेही हो सकती है, तथा जो कर्ता होता है उसको क्रिया अवश्य करनी पडती है । विना क्रिया कोईभी कर्ता नहीं हो सकता, तथा निराकारके कोई क्रिया हो नही सकती । इसलिए निराकार ईश्वर कभी किसीका कर्ता नहीं हो सकता | जब इस सृष्टिका कर्ता ईश्वर नहीं है तो फिर कौन है ? यही बात इस श्लोक में दिखलाते हैं। ऊपरके कथनसे यह बात सिद्ध हो जाती है, कि जिसमें क्रिया हो सकती हैं, वही इस सृष्टिका कर्ता हो सकता है क्रिया दो पदार्थों में दिखाई पडती है, एक जीवमें और दूसरे पुद्गलमें । जीवमें जो क्रिया दिखाई पडती है वह संसारी सशरीर जीव मेंही दिखाई पडती है । इसलिए इस सृष्टिका कर्ता एक तो सशरीर जीव है। सशरीर जीवही पुत्र-पौत्रादिक उत्पन्न करता है, खेती-व्यापार करता है, मकान - भवन बनाता है, वस्त्र बनाता है, और संसारके आवश्यकता के समस्त पदार्थ बनाता है। इसलिए यह सशरीर जीवही इस सृष्टिका कर्ता कहा जाता है। इसके सिवाय शुभाशुभ कर्मोंको यह सशरीर जीवही करता है, तथा यही जीव उनका फल भोगता है । इस जीवको जो शुभाशुभ सामग्री प्राप्त होती है, वहमी अपने किए हुए कर्मो के उदयसेही होती है । इसलिए भी यही सशरीर जीव इस सृष्टिका कर्ता माना जाता है। अतएव कहना चाहिए कि यह आत्माही सृष्टिका कर्ता होनेके कारण ब्रह्मा कहलाता है ।