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________________ (न्तसुधासिन) परके नीचे दब कर मर गया था, और उसी समय उत्तम देदीप्यमान् देव हआ था, वह देव उमी समय भगवान् महावीर स्वामीकी पूजा करनेके लिए समवशरणमें आया था, और भगवान् महावीर स्वामीकी पूजा करनेका महात्म्य सब लोगोंके लिए उसने प्रगट कर दिखाया था । अतएव भव्यजीवोंको सदाकाल धर्मका सेवन करते रहना चाहिए । प्रश्न- को नरजन्मयोग्योस्ति बद मे साम्प्रतं गुरो ? अर्थ- हे स्वामिन् ! अव कृपाकर यह बतलाइए कि मनुष्यजन्म प्राप्त करने के योग्य कौनसा जीव समझा जाता है ? उत्तर- को यःसदा परगुणस्तवनेतिदक्षः । निःस्वार्थतः स्वगुणनिंदन एव धीरः । सिद्धथै निजस्य निजदोषविलोकनारिः । ज्ञानी स एव परदोषविलोकने वा ॥ सत्यार्थदेवगुरुशास्त्रविविधाता। सन्तोषशान्तिनिलये सततं निवासी ॥ पूर्वोक्तकार्यनिरतो नरजन्मयोग्यो । यस्तद्विना पशुसमः प्रतिभाति मत्तः ॥ अर्थ- जो पुरुष इस संसारमें दूसरेके गुणोंकी स्तुति करने में अत्यंत चतुर होता है, जो बिना किसी स्वार्थके अपने गुणोंकी निंदा करनेम शूर-बीर होता है, जो अपने आत्माकी सिद्धिके लिए अपने दोषोंकों देखने में भी शत्रका काम करता है, जो दूसरोंके दोषोंको देखनमें ज्ञानी बन जाता है, जो यथार्थ देव-शास्त्र-गुरुकी पूजा, सेवा आदि विधियोंका विधान करता रहता है, और जो संतोष तथा शांतिके स्थानमेंही सदाकाल निवास करता है । इसप्रकार जो ऊपर लिखे हए कार्योंमें तल्लिन रहता है, वही मनुष्यजन्म प्राप्त करनेका अधिकारी माना जाता है। जो पुरुष ऊपर लिखें कार्योमें अपनी अभिरुचि नहीं रखता है. वह मदोन्मन पुरुष पशुके समान कहलाता है। भावार्थ- जो पुरुष मनुष्यपर्याय पा करकेभी दूसरोंके गुणोंको प्रशंसनीय नहीं समझना वह गुणज्ञ नहीं कहलाता । फिर तो उसे
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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