________________
( शान्तिसुधासिन्धु )
पुरुष अपने सूतक पातकको कभी बंद नहीं कर सकता। वेश्या मेदन करनेवाला तथा परस्त्रीसेवन करनेवाला पुरुष स्थान-स्थानपर अपमान रहन करता है, स्थान-स्थानपर मार खाता है, और कभी-कभी अपना जीवनभी गवां देता है । इसलिए ये दोनों इंद्रियां यद्यपि बहुत छोटी हैं. तथापि नरक निगोदके महादुःख देनेवाली हैं। इसलिए हे भव्य ! अब तु भी इन इंद्रियों विषयोंका सर्वथा त्याग कर, और अपने हृदय में श्रेष्ठ बुद्धि धारण कर, अपने आत्माका कल्याण कर । यही प्रत्येक भव्यजीवका कर्तव्य है ।
२४९
प्रश्न- कियत्कालं भवेत् क्रोधः कस्य जन्तोर्वद क्रमात् ?
अर्थ - हे प्रभो ! अब कृपाकर यह बतलाइए कि किम किम जीवका क्रोध कितने-कितने काल तक रहता है ?
उत्तर - कार्यवशात्क्षणं क्रोधो मुनीनां दुःखदो भवेत् ।
व्रतिनां पक्षमात्रोव्रतिनां मासषड्युतः ।। ३६१ ॥ मिथ्यात्वमूढजन्तूनां चिरं तिष्ठेद् भवप्रदः । ज्ञात्वेति पूर्ववृत्तान्तं क्रोधः कार्यो न दुःखदः ॥ ३६२ ।। बंधहेतुर्भवेन्मोह: क्रोध एव प्रमाणतः ।
ततो हेयः सदा निद्यः प्राणधाती प्रतिक्षणम् ॥ ३६३ ॥ अर्थ - इस संसारमें दुःख देनेवाला यह क्रोध मुनियोंके किसी विशेष कारणसेही होता है, और वह क्षणभरही ठहरता है। इसीप्रकार व्रती श्रावकों का क्रोध पन्द्रह दिन तक ठहरता है, अव्रती श्रावकों का को छह महीने तक ठहता है, और जन्म मरणरूप संसारको बढानेवाला मिथ्या दृष्टियों का क्रोध चिरकाल तक ठहरता है। यही समझकर भव्यजीवोंको दुःख देनेवाला यह कोध कभी नहीं करना चाहिए। इस संसारम तीव्र अशुभकमौका बंध करनेवाला मोह, तथा क्रोधही है, और यह मोह वा कोही प्रतिक्षणमें आत्माका घात करनेवाला है, और अत्यन्त निद्य है, इसलिए इन क्रोध और मोह दोनोंकाही त्याग कर देना चाहिए ।
भावार्थ - क्रोध के चार भेद है, अनंतानुबंधी क्रोध, अप्रत्याख्यानावरण कोष, प्रध्याख्यानावरण क्रोध और संज्वलन क्रोध । अनंतानधी