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( शान्तिसुधासिन्धु )
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दिनं न दृष्टंरविणा विना हि, ज्योत्स्ना न दृष्टा शशिना विनाच स्दात्मानुभूत्या हि बिना न मोक्षः तथा धनं नैव विना सुधमः
अर्थ – इस संसारमें बिना बादलोंकी वर्षा नहीं होती, बिना बछे बीजके वक्ष नहीं होता, बिना छत्रके छाया नहीं होती, बिना पिताके पुत्र नहीं होता, बिना मरणके जन्म नहीं होता, बिना श्रेठ विद्याके कीर्ति नहीं होती, बिना विवेकके शांति नहीं होती, बिना तेलके दीपक नहीं जलता, बिना सूर्यके दिन नहीं होता, बिना चंद्रमाके चांदनी नहीं होती, और विना स्वात्मान भव मोक्षको प्राप्ति नहीं होतो । उसी प्रकार बिना श्रेष्ठ धर्मके धनकी प्राप्तिभी कभी नहीं होती।
भावार्थ-- धनकी प्राप्ति पुण्यकर्मके उदयमे होती है। बिना पुण्यकर्मके उदय के धनकी प्राप्ति कभी नहीं होती, तथा पुण्य की प्राप्ति श्रेष्ठ धर्म धारण करनेसे होती है, बिना धर्मके आज-तक कभी किसीको पुण्यकी प्राप्ति नहीं हुई है, और न कभी हो सकती है। इस बातको सब लोग जानते हैं, दान देने से धन मिलता है, अथवा भगवन जिनेंद्रदेवकी पूजा करनेसे धनको प्राप्ति होती है । भगवान् जिनेंद्रदेवकी पूजा करना और पात्रदान देना, ये दोनोंही कार्य गृहस्थोंके लिए सर्वोत्तम धार्मिक कार्य हैं । ये ही पुण्यके साधन है, और ये ही धन बा लक्ष्मीकी प्राप्तिके कारण है । यदि बास्तवमें देखा जाय तो पात्रदान और जिनपूजन इन दोनोंही कार्यों में अभिरुचि होना सम्यग्दर्शनका कार्य है, तथा सम्यकदर्शनके समान अन्य कोई कार्य पुण्य उपार्जन करनेवाला नहीं है, इसलिए जिस प्रकार मेघोंके होनेपरही वर्षा होती है, बीजके होनेपरही वृक्ष होते है, छत्रके होनेपर छाया अवश्य होती है, पिता कहलानेपर पुत्र अवश्य होता है, मरनेके अनन्तर इस जीवका जन्म अवश्य होता हैं, श्रेष्ठ विद्यासे कीति अवश्य फैलती है, विवेक होनेपर शांति अवश्य होती है, तेल होनेपर दीपक अवश्य जलता है, सूर्य के होनेपर दिन अवश्य कहलाता है, चंद्रमाके होनेपर चांदनी अवश्य होती है और स्वात्मानुभूति होनेपर मोक्षको प्राप्ति अवश्य होती है, उसी प्रकार पात्रदान वा जिनपूजन आदि धर्मके धारण करनेसे धनकी प्राप्ति अवश्य होती है, इसलिए प्रत्येक भव्यजीवको धनादिक सुखकी सामग्री प्राप्त करने के लिए धर्मको अवश्य धारण करना चाहिए।