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(शान्तिसुधासिन्धु )
किसी भी अरहंत नामपर रख दिया जाता है, और फिर उसपर अरहंतदेव के सब संस्कार कर दिए जाते हैं, तब वह पाषाणकी मूर्तिही दे जाती है । उसी प्रकार संस्कार वा संसर्गसे समस्त गुण आ जाते हैं, और समस्त अवगुण आ जाते है । इन लोगों में संसर्गके कारण क्या-क्या गुण वा अवगुण प्राप्त होते हैं, इस बातको हम लोगभी नहीं जान सकते । यही समझकर मोक्ष की इच्छा करनेवाले भव्यजीवोंको नीच और दुष्ट संगतियोंका त्याग कर देना चाहिए, और श्रीर-वीर साधु पुरुषोंकी संगति करनेका प्रयत्न करते रहना चाहिए ।
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भावार्थ - जो पुरुष जुआरियोंकी संगतिमें बैठता है, वह जुआरी अवश्य हो जाता है, जो चोरोंकी संगतिमें बैठता है, वह चोर हो जाता है, जो शिकारियोंकी संगतिमें बैठता है, वह शिकारी हो जाता है, जो मायाचारियोंकी संगतिमें बैठता है, वह मायाचारी हो जाता है, जो हिसकोकी वा घातकों की संगति में बैठता है, वह हिंसक वा घातक हो जाता है। जो क्रूर वधकोंकी संगतिमें रहता है, वह क्रूर वा वधक बन जाता है । जो पुरुष प्रतिदिन साधुओं की सेवा सुश्रुशा करता है, उसके परिणाम अवश्य शान्त हो जाते हैं। साधुओंके समीप रहनेसे वह साधुओं जैसी क्रियाएं करने लगता है, वह धीरे-धीरे पापोंका त्याग कर देता है, और पुण्यकार्यों को बढाता रहता है । इस प्रकार वह धीरे-धीरे साधु बन जाता है। इसी प्रकार दानी पुरुष के पास रहने से उसमें उदारता था जाती है। दानके गुण और लाभ उसके हृदय में समा जाते हैं, और फिर वह स्वयंभी दान देनेके लिए तत्पर हो जाता है, और अच्छा दानी वन जाता है, उत्तम भाषण देनेवाले वक्ता लोगोंकी संगति करनेसे वह चतुर पुरुष भाषण देनेकी शैली, उसके नियम, उपनियम, उदाहरण, युक्तियां, भाषाका चढ़ाव - उतार, वाक्यरचना, क्रियाकारकमंबंध, वर्णन करनेकी क्षमता वा दक्षता आदि सब गुणों को मीस लेता है तथा भाषण सुनते-सुनते वह वैसेही शब्द कहने लगता है, वैसेही उदाहरण देने लगता है, और वही शैली सीख लेता है । इस प्रकार वह थोडेही दिनोंमें एक अच्छा वक्ता बन जाता है । इसीप्रकार ध्यान करनेवाले मुनिराजोंकी सेवा सुश्रूशा करनेसे वा उनके समीप रहनेसे ध्यानके आसन समझ लेता है, शरीर