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( शान्तिसुधासिन्धु )
होने से विद्याका सदुपयोग नहीं होता है । कषायोंकी तीव्रताके कारण यह मनुष्य उस विद्याका दुरुपयोग कर बैठता है । उस हिंसा बा मायाचारी आदि पाप कार्योम लगा देता है। क्षमावान् मनुष्य शांत नित्त होकर उस विद्याका परिशीलन करता है। फिर अपने आत्माके कल्याण करनेमें लगता है । यह विद्याकी शोभा है । इससे सिद्ध होता है, कि विद्याकी शोभा क्षमासेही होती है । इसप्रकार कुलकी शोभा शील पालन करने से होती है । जिस कुलमें शील पालन नहीं होता, व्यभिचार सेवन होता है, अथवा विधवाविवाह वा धरेजा होता है, वा देशाके समान विजानीय निकाह होता है, वह दुल न तो बढ़ सकता है, और न संसारमें बह प्रशंसनीय वा उनम माना जाता है । व्यभिचार सेवन करनेमे, अथवा धरेजा वा विजातीय विवाह करनेसे सज्जातिरत्न नष्ट हो जाता है, जिन कुलोंमें परम्परापूर्वक सदाचार चला आता है, धरेजा वा विजातीय विवाह नहीं होता बा व्यभिचार सेवन नहीं होता, उन कुलों में उत्पन्न होनेवाले मनुष्य सज्जातिवाले कहलाते हैं । इसका भी कारण यह है कि कुल परम्परासे व्यभिचार सेवन न होमके कारण उनके रजोवीर्य में शुद्धता बनी रहती है । व्यभिचार सेवन करनेसे वा धरेजा विजातीय विवाहसे रजोवीर्यमें अशुद्धता आ जाती है, तथा रजोबीर्यमें अशद्धता होनसे सज्जातित्व अवश्य नष्ट हो जाता है। इसलिए कूलकी शोभा झील पालन करनेसेही होती है । यह निश्चित सिद्धांत है । इसप्रसार रूपकी शोभा गुणोंने होती है, सुंदर रूपबान होकरभी जो विद्या आदि गुणोंको धारण नहीं करता वह बगुलाके समान ऊपरसे अच्छा दिखलाई देनेवाला होता है । वह इसके समान प्रशंसनीय और सुशोभित नहीं हो सकता । इसलिए पकी शोभा गुणोंसेही मानी जाती है । धनकी शोभा त्यागसेही होती है । जो पुरुष धनी होकर दान नहीं देता वह मनुष्य कृपण कहलाता है, और फिर उसका मुंह देखनाभी कोई पसन्द नहीं करता । दान देनेसे इस लोकमें सर्वत्र कीर्ति फैल जाती है, दान देनेसे शत्रुभी अपना दास हो जाता है । दानसे इस लोकके भी सब काम सिद्ध हो जाते हैं, और परलोकभी सुधर जाता है। इसप्रकार लक्ष्मीकी शोभा सौम्यता वा शान्तिसे होती हैं। जो पुरुष लक्ष्मीको पा करके, उग्र परिणाम धारण करता है, वह अनेक आपत्तियोंमें फंस जाता हैं, तथा उसका सब धन इसी में नष्ट हो जाता हैं । जो पुरुष