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________________ ( शान्तिसुधासिन्धु ) अर्थ- हे भगवन् ! अब यह बतलाने की कृपा कीजिए कि जिस प्रकार पशुओंको रस्सीसे बांधकर ले जाते हैं उमी प्रकार मनुष्यों को किससे बांधकर ले जाते है ? उत्तर - दृढप्रगाढेन च मोहरज्जु-, नान्त्यन्तदुःखाब्धिविवर्द्धकेन । बध्वेति जीवान् खलकमंचौरा, हठान्नयन्त्येव च यत्र तत्र ।। २९ ॥ यथैव बध्वा वृद्धरज्जुना च, को श्रृंखलेनैव नरा नयन्ति । क्रूरांश्च सौम्यानपि सर्वजन्तून्, ग्रामान्तरं वा नगरान्तरं च ॥ ३० ।। अर्थ- जिस प्रकार मनुष्य किसी मजबूत रस्सीसे अथवा सकलसे बांधकर क्रूर अथवा शान्त पशुओंको एक गांवसे दूसरे गांव तक अथवा एक नगरसे दुसरे नगर तक ले जाते हैं, उसीप्रकार अत्यन्त दुष्ट ऐसे कर्मरूपी चोर अत्यन्त महादुःख रूपी समुद्रको बढानेवाले ऐसे मोहरूपी रस्मीसे इन मनुष्यादिक समस्त जीवोंको जबरदस्ती बांधकर इधर उधर ले जाते हैं। भावार्थ- ग्रह जीव स्वयं जिन कोको करता है फिर वह उन्हीं कर्मोके आधीन हो जाता है। जिस प्रकार घोडेके वालोंसे बनी हुई रस्सी उसी घोडेको मजबूतीके साथ बांध लेती है, उसी प्रकार इस जीवके द्वारा किये हुए कर्मरूपी चोर उन्हीं कोंके उदयसे उत्पन्न होनवाले मोहरूपी रस्सी के द्वारा इस जीवको मजबूतीके साथ बांध देते हैं और फिर चारों गतियोंके परिभ्रमणमें अनन्त काल तक धुमाया करते हैं । पशुओंको सांकल वा रस्सीसे बांधकर एक स्थानसे दूसरे स्थान तक ले जाते हैं इसमें तो मनुष्योंका स्वार्य है । मनुष्य अपने स्वार्थके लिए ही पशुओंको बांधते हैं और बांधफर ले जाते हैं । परन्तु कर्म जो मोहरूपी रम्सीमे जीवोंको बांधते हैं वा बांधकर चारों गतियोंमें परिभ्रमण कराते हैं उसमें कर्मोंका कोई स्वार्थ नहीं है। वे कर्म तो इसी जीवने अपने
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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