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(शान्तिसुधा सिन्धु )
बिराजमान होता है, तथा जो पुरुष इसके विपरीत कार्य करता है. यथार्थ देवशास्त्र गुरुमें अनुराग नहीं रखता, वह पुरुष सदाकाल संसारमें परिभ्रण करता हुआ नरक निगोदके विषम दुःख सहन किया करता है ।
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भावार्थ - जिस प्रकार स्त्री-पुत्र आदि कुटुंबी लोगोंमें वा धनधान्यादिक बाह्य पदार्थोंमें अनुराग करनेसे अनेक प्रकारके महापाप करने पड़ते हैं, और उन पापों के कारण नरक निगोंदके दुःख सहन करने पडते हैं, उसी प्रकार भगवान अरहंत देवमें अनुराग करनेसे अनंत पुण्यकी वृद्धि होती हैं । इसका कारण यह है कि भगवान अरहंत हेत समस्त पापोंसे रहित हैं। पातक न हो जाने से उनका आत्मा अत्यंत निर्मल और शुद्ध हो जाता है। उनके अनंतचतुष्टय प्रगट हो जाते हैं, चौतीस अतिशय प्रगट हो जाते हैं, और आठ प्रातिहार्य प्रगट हो जाते हैं । इस प्रकार वे भगवान अपने कर्मोंको नष्ट कर अपने आत्माका यथार्थं कल्याण कर देते है । जो पुरुष इस प्रकार अपने पाप कर्मोंको नष्ट कर, आत्माका कल्याण करना चाहता है, और eringष्टय आदि आत्माके गुणोंको अपनेही आत्मामें प्रगट करना चाहता है, वह पुरुष भगवान अरहंत देवमें भक्ति वा अनुराग करना चाहता है। भगवान अरहंत देवके गुणोको बार-बार स्मरण करना भक्ति है, और उनको प्रगट करनेकी लालसा रखना अनुराग है । जो पुरुष अपने अनंतचतुष्टय प्रगट करने की लालसा से उन गुणोंको बार बार स्मरण करता है। और फिर उनको प्रगट करनेके लिए कोधादिक कषायोंको सर्वथा त्याग कर पूर्ण चारित्र धारण करता है. वह अवश्यही पाप कर्मोंको नष्ट कर आत्मजन्य सुख में मग्न हो जाता है। इसमें किसी प्रकारका संदेह नहीं है। इस प्रकार उन भगवान अरहंत देवके गुणोको प्रगट करनेवाले और उन गुणोको प्रगट करनेके उपाय बतलानेवाले उन अरहंत देवके कहे हुए शास्त्र हैं । अथवा वीतराग निग्रंथ गुरु है | शास्त्रist faनयके साथ पढनेसे तथा गुरुकी सेवा करनेसे मोक्ष का यथार्थ मार्ग प्राप्त हो जाता है, और धीरे धीरे वह सेवा करनेवाला भव्यजीव अपने आत्माका कल्याण कर लेता है, इसलिए देव शास्त्र गुरुकी सेवा करनेसे स्वर्ग मोक्षकी प्राप्ति अवश्य होती है, जो पुरुष देव-शास्त्र-गुरुकी सेवा - भक्ति नहीं करता, केवल स्त्री-पुत्रादिक के