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________________ शान्तिसुधासिन्धु ) 1 है कि यह मनुष्य जैसी संगतिमें रहता है, वैसा ही हो जाता है। इसलिए धर्मात्मा मनुष्योंको ऐसे ही मनुष्योंकी संगति में रहना चाहिए जो धर्मात्मा हों । धर्मात्माओं के साथ रहने से दिन-रात धर्मकी वृद्धि होती रहती है, और पुण्यका साधन बढता रहता है। न्यायवान् और नीतिवान् लोगोंकी संगति में रहनेसे इस मनुष्यको कभी दुःख नही पहुंच सकता, और न यह मनुष्य दूसरोंको दुःख देकर पाप उपार्जन कर सकता है। जो जो लोग रात-दिन परलोककी चर्चा करते रहते हैं. परलोकके दुःखोंसे डरते रहते हैं, उनकी संगति करनेसे यह मनुष्य अपना परलोक भी सुधार लेता है । इस संसारमें लोकलज्जा रखनेसेभी बहुतमे पाप छूट जाते हैं। मनुष्य लोकलज्जा छोड़ देते हैं, वे निर्लज्ज होकर अनेक प्रकारके दुष्कृत्य और पाप किया करते हैं। इसलिए निर्लज्ज लोगोंकी संगति कभी नहीं करना चाहिए। इस प्रकार जो मनुष्य अशुभ कर्मोसे डरते रहते हैं, उनकी संगति करने से यह मनुष्य श्री अशुभ कर्मोंस डरता रहता है, तथा पुण्य कार्योंमेंही लग जाता है । अपने श्रेष्ठ कुल और सज्जातिकी रक्षा करना प्रत्येक धर्मात्मा मनुष्यका कर्तव्य है । श्रेष्ठकी रक्षा और सज्जातित्त्वको रक्षा, सदाचार पालन करने से होती है । व्यभिचार सेवन करनेसे वा धरजा, विधवा-विवाह या विजातीय विवाह करनेसे सज्जातित्व नष्ट हो जाता है । पश्चिमी सभ्यतासे रंगे हुए कुछ लोग इस विजातीय विवाहकोही अन्तर्जातीय विवाह कहते हैं, परन्तु यह मायाचारी है। ये जातियां अनादि कालमे चली आ रही हैं, तथा विवाहसम्बन्ध अपनी जातिमेंही होता है । विजाति में नहीं । विजातिकी कन्या लेनेसे वा विजातीय पुरुषको देने से भिन्न-भिन्न जातियां नहीं रह सकती, तथा भिन्न-भिन्न जातियां न रहनेसे किसी भी पापके लिए जातीय दंड नहीं हो सकता । जातीय दंड न होनेसे उच्छृंखलता और दुराचारकी वृद्धि होती है। इसलिए इस मनुष्यको कुल और जातिकी रक्षा करनेके लिए ऐसेही मनुष्योंकी संगतिमें रहना चाहिए, जो सदाचार पालन कर जाति और कुलकी रक्षा करते हों। इस प्रकार जो मनुष्य शास्त्रोंके जानकार हैं, उनकी संगति करनेसे शास्त्रोंकी चर्चाका आनंद आता है, और शास्त्रोंका ज्ञान बढता है | विचारशील मनुष्योंके पास बैठनेसे यह मनुष्य भी अपने १७३
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
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