SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 158
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( शान्तिसुधासिन्धु ) राजाका कार्य है । यदि प्रजा असंतुष्ट हो जायगी तो उस राजाको राज्यसिंहासनसे अलग कर सकती है, कहांतक कहा जाय ? राज्यसिंहासनगर वही राजा टीक सकता है जिसमें ऊपर लिखे हुए राजाके समस्त गुण हो । प्रश्न- कसाधुब्रह्मचारी कः कदा मे कीदृशो बद अर्थ - हे प्रभो ! अब कृपाकर यह बतलाइये कि किस-किम समयमें कौन-कौन साधु कहलाता है, और किस-किस समयमें कैसा ब्रह्मचारी कलाता है ? उ.-यो ज्ञानहीनश्च भवेत्स साधुः स ब्रह्मचारी रमया विहिनः यः पुत्रहीनः सच देवभक्तः संषा सुशीला जरयातिजीर्णा २३६ ध्याता स मंत्रस्य धनेन हीनो, यो दन्तहीनश्चणकाद्विरक्त । यो धैर्यधारो परस्य दुःख सस्पेशाः कौ बहवश्च मूर्खाः २३७ पूर्वोक्तदोषश्च विवजिता ये, सन्त्यत्र लोके विरलाश्च भञ्याः। त्यक्त्वा स्पृहादि सुकृति हि कृत्वा,स्वर्गापवर्ग क्रमतो लभन्ते।। अर्थ - इस संसारमें अहतसे लोग मायाचारीभी करते हैं। जो लोग आत्मज्ञानमे सर्वथा रहित होते हैं, वे साधु हो जाते हैं. जो लोग धनहीन वा स्त्रीहीन होते हैं, वे ब्रह्मचारी कहलाते हैं, जिनके पुत्रपौत्रादिक संतान नहीं होती, वे लोग देवोंकी भक्ति किंगा करते है, और देवभक्त कहलाते हैं । जो स्त्री वृद्धावस्था होनेके कारण अत्यन्त जीर्णशीर्ण हो जाती है, वह शीलवती कहलाती है । जो धनहीन होता है वह अनेक मंत्रोंका ध्यान करनेवाला ध्याता कहलाता है। जिसके दांत सब गिर जाते हैं. वह चना-चबानेका त्याग कर देता है । जो दूसरोके दुःख में भी धैर्य धारण करता रहता है, वह धीर-वीर कहलाता है । इस प्रकार संसारमें अनेक अज्ञानी देखे जाते हैं, परंतु जो लोग ऊपर लिखे दोषोंसे रहित हैं, ऐसे भव्यपूरुष इस मंसारमें बढ़त थोडे हैं । ऐसे भव्य मनुष्य अपनी इच्छाओंका त्याग कर पुण्य उपार्जन कर लेने हैं और अनुक्रमसे स्वर्ग तथा मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं ।
SR No.090414
Book TitleShantisudha Sindhu
Original Sutra AuthorKunthusagar Maharaj
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages365
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy