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( शान्तिमधासिन्धु)
करते रहते हैं। ऐसे पुरुष इस संसारमें सर्वोत्तम सज्जन कहलाते हैं। उन्हींको लोक भाग्यशाली कहते हैं, और बुद्धिमान कहते हैं, जो पुरुष अपने स्वार्थका घात भी नहीं करते अर्थात् अपना म्वार्थ वा अपने आत्माका कल्याण भी करते जाते हैं, और दूसरोंके आत्माका भी कल्याण करते जाते हैं। ऐसे पुरुष मध्यमपुरुष कहलाते हैं, परंतु जो लोक अपना स्वार्थ सिद्ध करनेके लिए दूसरोंका घात कर डालते हैं, ऐसे धनं पशुओंको, मनुष्य घातक अत्यंत निकृष्ट और महाहिसक कहते हैं । इनके सिवाय एक प्रकारके मनुष्य और हैं, बिना कारण ही दूसरे जीवोंका घात किया करते हैं, शिकार खेला करते हैं, वा अनंन जीवोंका घात करनेवाले आविष्कार निकाला करते हैं, वा ऐमे अस्त्र शस्त्र बनाया करते हैं, वा और भी ऐसे कार्य किया करते हैं, ऐसे लोगोंको नाम नक रखने के लिए इस संसारमें कोई शब्द नहीं हैं। ऐसे मनुष्य इस समारमें सबसे निकृष्ट और महापापी समझे जाते हैं।
प्रश्न यस्य स्वात्मरसास्वादः स्यात्तम्यान्यरुचिर्न वा ?
अर्थ- हे भगवन् ! अब यह बतलाने की कृपा कीजिए कि जो महापुरुष अपने आत्माके अनन्त सुखरूप रसका आस्वादन करते रहते हैं, उनकी रुचि किसी अन्य पदार्थके आस्वादन करने में वा अन्य किसी कार्यके करनेमें होती है, ना नहीं ? उत्तर - स्वानंदपुरश्च गतान्तराय
श्चिदात्मके स्वात्मनि शुद्धबुद्धे । सदा समन्ताद वहतोह तस्य तस्यास्मतुष्टस्य निजाश्रितस्य ॥ २०८ ॥ सम्पूर्णविश्वं तृणवविभाति स्याल्लोकवार्ता विफला ह्यलोक्या। क्वचिद्यसेत्कार्यवशानृसंगे
तथापि तत्रात्मरुचिर्न दृष्टा ॥ २०९ ।।
अर्थ-- जिस महापुरुषके शुद्ध और चतन्यस्वरूप आत्मामें दिना किसी अंतरायके अपने आत्मजन्य आनंदका पूर सदाकाल चारों ओरसे बहता रहता है, उस अपने आस्मामें संतुष्ट रहनेवाले और अपने