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सम्पचारित-चिन्तामणिः विवग्धोऽपिलोका कृतो येन मुग्धः
स कामःप्रकामं रतं वात्मतत्त्वे । न शक्तो बभूव प्रजेतुं मनाग यं
स वीरः प्रवोरः प्रमोदं प्रपद्यात् ॥१६॥ अर्थ-जिसके द्वारा चतुरा मनुष्य भी मुग्ध-मूद कपि गये थे वह काम आत्मतत्त्वमें लीन रहने वाले जिन्हें जीतने के लिये कुछ भी समर्थ नहीं हो सका था वे अतिशय शूरवीर महावीर भगवान श्रेष्ठ आनन्दको प्रदान करें॥ १६॥ जगज्जीयधातीनि घातीनि कृल्या
हतान्येव लेने परं ज्ञानसत्वम् । अलोकं च लोकं ददर्शात्मना यः
स वीरःप्रवोरा प्रमोवं प्रवद्यात् ॥ १७ ॥ अथं-जगत्के जीवोंका घात करने वाले घातियाकोको नष्ट करके हो जिन्होंने उत्कृष्ट ज्ञानतत्त्व-केवलज्ञानको प्राप्त किया था और अपने आपके द्वारा जिन्होंने लोक अलोकको देखा था वे अतिशय शूरथोर महावीर भगवान् श्रेष्ठ आनन्द प्रदान करें ।। १७ ॥ सशिष्यः स विप्रो गुरुगों तमोपं
समासोनमारान् विलोक्येवनूनम् । मदं भूरिमानं मुमोच स्वकीय
प्स धीरः प्रवीस प्रमोवं प्रदद्यात् ।। १८ ॥ अर्थ-शिष्यों सहित गुरु गौतम ब्राह्मणने समवसरणमें विराजमान जिन्हें दूरसे ही देखकर निश्चित है अपना बहुत भारो अहंकार छोड़ दिया था वे अत्यन्त शूरवीर महावीर भगवान् श्रेष्ठ आनन्द प्रदान करें ॥ १८॥ सुरेन्द्रानुगेनालकानामकेनाss
कृतास्थानभूमि समास्थाय विव्यः। वघोभिर्य ईशो दिवेशार्थसार्थ
सवीरःप्रवीरःप्रमोदं प्रदद्यात् ॥ १९ ॥ अर्थ-इन्द्र के अनुगामी आज्ञाकारी कुबेरके द्वारा निर्मित समवसरणमें विराजमान होकर जिन्होंने दिव्यध्वनिके द्वारा पदार्थ समूहका उपदेश दिया था वे अतिशय शूरवोस महावीर भगवान् श्रेष्ठ आनन्द प्रदान करें ॥ १६॥