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तृतीय प्रकाश
चर्चा करें तथा सात हाथ दूर बैठकर शास्त्रको वाचनाको सूनें। यह आचार संहिता मुनियोंको नियमसे पालन करने योग्य है ।। ७२-८३ ।। अब आगे अपरिग्रह महावतका वर्णन करते हैं
अथाने सम्प्रवक्ष्याम्यपरिग्रहमहावतम् । मूर्छापरिग्रहः प्रोक्तो धनधान्याविवस्तुषु ।। ८४ ॥ तां त्यक्त्वा मुनयो यान्ति नैर्गन्धों परमा बशाम् । परिग्रहपिशाचोऽयं यस्य मधंनि वर्तते ॥ ८५ ।। भ्रान्तचित्तः स सम्भूय कुरुते विविधाः क्रियाः । मिथ्यात्वं वेवरागाश्च क्रोधाचीनां चतुष्टयम् ॥ ८६ ।। हास्यादयश्च षट् चते झम्त रङ्गाः परिग्रहाः । सचिसाचित्तमिश्राणां भेदाद् बाह्यपरिग्रहाः ॥ ८७ ॥ प्रिविधा विविता लोके मोहोत्पावनहेतवः । दासीवासगवाश्याद्याः सचित्ता रखतावयः ॥ ८८ ॥ अचित्तास्तु गहारामा मिश्रा ज्ञेयाः परिग्रहाः। मनोवाक्कायचेष्टाभिरेषां स्यागोऽपरिग्रहः ॥ ८९ ॥ उभयग्रन्थसन्स्यागी कैवल्यं लभतेऽचिरात् । परिग्रहातुरो जोबो वम्भ्रमीति भवे भवे ।। ९० ॥ शिरास्थं भारमुत्तार्य भवेन्मयों यथा सुखो। तथा पारिग्रहं भारमुत्तार्य स्यात्सुखो मुनिः॥ ११॥ पष्ठबद्धमहाभारो जनो मज्जति सागरे।
यथा तथात्त ग्रन्थोऽयं मम्मत्येव भवार्णवे ।। ९२ ॥ अर्थ – अत्र आगे अपरिग्रह-परिग्रह त्याग महावतका कथन करंगे 1 धन-धान्य आदि वस्तुओंमें जो मूच्छी-ममत्व परिणाम हे वह परिग्रह कहा गया है । इस मूर्छाका त्याग कर मुनि उत्कृष्ट निग्रंन्य दशाको प्राप्त होत हैं । यह परिग्रह रूपो पिशाव जिसके शिरपर रहता है वह भ्रान्त चित्त होकर नाना प्रकारको क्रिया करता है। मिथ्यात्व एक, वेद सम्बन्धी राग तोन, कोबादि चार और हास्यादि : नो कषाय छह ये चौदह अन्तरङ्ग परिग्रह हैं। बाह्य परिग्रह लोकमें सचित्त, अचित्त और मिश्रके भेदसे तोन प्रकारके माने गये हैं। ये तोनों प्रकारके परिग्रह मोहोतिके कारण हैं । दासो, दास, गाय और घोड़ा आदि सचित्त परिग्रह हैं. चांदो आदि अचित्त परिग्रह हैं और स्त्रो पुरुषोंसे सहित घर तथा हरो भरो वनस्पतियोंसे सहित बाग वगोचे मिश्र परिग्रह जानने