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मएकवारित जिन्टा पणिः ( अंकुर उत्पादनको शक्तिसे युक्त गेहूँ, चना तथा मुनक्काका बीज आदि ), १२. फल (जामुन आदि सचित्त फल), १३. कन्द ( जमीकंद आल, सुरण, शकरकन्द आदि ) और १४. मूल ( मूली तथा पिप्पली आदि)।
इन १४ मलोंमें कुछ महामल हैं और कुछ अल्पमल हैं। कोई महादोष हैं और कोई अल्प दोष । जैसे रुधिर, मांस, हड्डी, चर्म और पोप ये महादोष हैं। आहारमें इनके आ जाने पर आहार छोड़ दिया जाता है तथा प्रायश्चित भी किया जाता है। आहारमें इन्द्रिय, त्रोन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जोवका कलेवर यदि आ जाय तो आहार छोड़ देना चाहिये । बाल निकलने पर आहार छोड़ देना चाहिये । नखके निकलने पर आहार छोड़कर कुछ प्रायश्चित लिया जाता है। कण, कुण्ड, बोज, कंद, फल और मूलके आने पर यदि ये अलग किये जा सकते हों तो अलगकर आहार लिया जा सकता है और अलग न किये जा सकने पर आहार छोड़ देना चाहिये।
बत्तीस अन्तराम १. काफ-चर्याक लिये जाते समय मुनिके ऊपर यदि का या वक आदि पक्षो बोट कर दे तो यह काक नामका अन्तराय है।
२. अमेध्य--चर्याक लिये जाते समय यदि साधुका पर विष्ठा आदि अपवित्र पदार्थसे लिप्त हो जाय सो अमेध्य नामका अन्तराय
३. छदि-चर्या के लिये जाते समय मुनिको यदि वमन हो जाय तो छदि नामका अन्तराय है।
४. रोधन-चर्याक लिए जाते समय साधुको यदि कोई रोक दे या पकड़ ले तो रोधन नामका अन्तराय है। ___५. रुधिर-यदि आहार करते समय साधु के शरीरसे रुधिर निकल आवे या किसी अन्य के शरोरसे निकलता हुआ कधिर दिख जाय तो रुधिर नामका अन्तराय है।
६. अश्रुपात-दुःख के कारण अपने या सामने खड़े किसी अन्य व्यक्ति के नेत्रसे अश्रुपात होने लगे तो अश्रुपात नामका अन्तराय है।
७. जान्वधः परामर्श- घुटनोंसे नोचेके भागका यदि हाथ से स्पर्श हो जाय तो जाग्वधः परामर्श नामका अन्तराय है ।